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________________ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला ४११ सेठ के दृढ़ परिणामों को देख कर देवों ने अपनी माया समेट ली और दान का माहात्म्य बताने के लिये वसुधारा आदि पाँच द्रव्य प्रकट किये । उत्तम दान के प्रभाव से धन्ना सेठ ने मोक्षवृक्ष का बीम रूप चोधिरत्न (सम्यक्त्व रत्न) प्राप्त किया। (२) सुखपूर्वक आयु पूर्ण करके वह उत्तर कुरुक्षेत्र में तीन पन्योपम की आयु वाला युगलिया हुआ। (३) युगलिये का आयुष्य पूर्ण कर धन्ना सेठ का जीव सौधर्म देवलोक में उत्पन्न हुआ। (४) देवभवधारी धन्ना सेठ का जीव देवतासम्बन्धी दिन्य सुखों का उपभोग कर आयुष्य पूर्ण होने पर महाविदेह क्षेत्र में गान्धार देश के स्वामीराजाशतवल कीरानी चन्द्रकान्ता की कृति से उत्पन्न हुआ । यहॉ उसका नाम महावल रखा गया। योग्य वय होने पर राजा शतवल ने उसका विवाह अनेक राजकन्याओं के साथ कर दिया और राज्यभार सौंप कर स्वयं संयम अङ्गीकार कर विचरने लगा। बहुत काल तक संयम की आराधना कर शतचल स्वर्गवासी हुश्रा। राजा महायल न्याय नीति पूर्वक राज्य करने लगा। उसके चार मन्त्री थे-स्त्रयंबुद्ध, संमिनमति, शतमति और महामति । इन चारों में स्वयंबुद्ध सम्यक्त्वधारी एवं धर्मपरायण था। शेष तीन मन्त्री मिथ्यात्री थे। वे महावल राजा को संसार में फंसाये रखने की चेष्टा करते थे किन्तु स्वयंयुद्ध मन्त्री समय समय पर धर्मोपदेश द्वारा संसार से निकलने के लिये प्रेरणा किया करता था। बहुत काल तक राज्य करने के पश्चात् राजा महावल ने राज्य का त्याग कर संयम अङ्गीकार कर लिया । अपनी आयु के दिन थोड़े जान कर दीक्षा लेने के दिन से ही अनशन कर लिया। उसका अनशन पाईस दिन तक चलता रहा।
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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