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________________ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला - - भावार्थ- सर्वोत्कृष्ट पराक्रम वाले, अमितज्ञानी, संसारसमुद्र से तरे हुए, सुगति गति अर्थात् मोक्ष में गये हुए, सिद्धिपथ अर्थात् मोक्षमार्ग के उपदेशक तीर्थकर भगवान् को वन्दन हो ॥१॥ ___महाभाग्य, महामुनि, महायश, देवेन्द्र और नरेन्द्रों द्वारा पूजित तथा वर्तमान तीर्थ के प्रवर्तक भगवान् महावीर को चन्दन हो ॥२॥ प्रवचन अर्थात् भागमों का सूत्र रूप से उपदेश देने वाले गौतम आदि ग्यारह गणधरों को, सभी गणधरों के वंश अर्थात् शिष्य परम्परा को, वाचकवंश को तथा पागम रूप प्रवचन को वन्दना करता हूँ ॥३॥ अरिहन्त भगवान् केवल अर्थ कहते हैं, गणधर देव उसे द्वादशाङ्गी रूप सूत्रों में गूथते हैं। श्रतएव शासन का हित करने के लिये सूत्र प्रवर्तमान हैं ॥४॥ मैं समस्त श्रुत-आगम का भक्तिपूर्वक आश्रय लेता हूँ, क्योंकि वह तीर्थंकरों से अर्थरूप में प्रकट होकर गणधरों के द्वारा शब्दरूप में अथित हुआ है। वह श्रुत विशाल है अतएव बारह अङ्गों में विभक्त है। वह अनेक अर्थों से युक्त होने के कारण अद्भुत है, अतएव उसको बुद्धिमान् मुनि पुङ्गवों ने धारण कर रक्खा है। वह चारित्र का कारण है, इसलिये मोक्ष का प्रधान साधन है। वह सब पदार्थों को प्रदीप के समान प्रकाशित करता है, अतएव वह सम्पूर्ण संसार में अद्वितीय सारभूत है ॥५॥
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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