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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग ३४५ अनादि मिथ्यादृष्टि अथवा सम्यक्त्व का वमन करने वाले प्रथम गुणस्थानवी जीव में, सम्यक्त्व का वमन करने वाले तृतीय मिश्र गुणस्थानवी जीव में, चौथे अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर ग्यारहवें तक क्षायिक सम्यक्त्व वालों के सम्यक्त्व मोहनीय सचा में नहीं होती। इन्हें छोड़ कर चाकी सब जगह रहती है। दूसरे सास्वादन गुणस्थान में नियम से २८ प्रकृतियाँ सत्ता में होती हैं। तीसरे मिश्र गुणस्थान में साधारणतया २८, सम्यक्त्व वमन करने वाले के २७ तथा अनन्तानुवन्धी चौकड़ी छोड़ने वाले के २४ प्रकतियाँ सत्ता में रहती हैं। मिश्रमोहनीय प्रकृति की सत्ता था उदय के विना तीसरे गुणस्थान की प्राप्ति नहीं होती । इस लिए तीसरे गुणस्थान में किसी भी अपेक्षा से २६ प्रकृतियों की सत्ता नहीं होती। दसरे और तीसरे गुणस्थान को छोड़ पहले से लेकर ग्यारहवें तक नौ गुणस्थानों में मिश्रमोहनीय की मजना है। प्रथम गुणस्थान में जिस मिथ्यादृष्टि जीव के सम्यक्त मोहनीय तथा मिश्रमोहनीय को छोड़ कर वाकी २६ प्रकृतियों की सत्ता है, उसके तथा अविरत सम्यग्दृष्टि से लेकर ग्यारहवें उपशान्त मोहनीय गुणस्थान राक क्षायिक सम्यक्त्व वाले जीवों के मिश्रमोहनीय सत्ता में नहीं होती, पाकी के होती है। प्रथम और द्वितीय गुणस्थान में अनन्तानुवन्धी चौकड़ी नियम से सत्ता में होती है । ग्यारहवें तक पाकी नौ गुणस्थानों में भजना है। अनन्तानुवन्धी का चय करके तीसरे गुणस्थान को प्राप्त होने वाले जीव के,अनन्तानुवन्धीचार तथा मिथ्यात्व, मिश्र और सम्यक्त्व मोहनीय का क्षय करके अथवा अनन्तानुवन्धी का क्षय तथा वाकी तीन का उपशम करके चौथे गुणस्थान को प्राप्त करने वाले जीव के अनन्तानुवन्धी चौकड़ी सचा में नहीं । रहती । इसी प्रकार जो जीव क्रमशः प्रकृतियों का क्षय करके ऊपर ' के गुणस्थानों में जाता है उसके अनन्तानुबन्धी सत्ता में नहीं रहती।
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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