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________________ श्री सेठिया जैन प्रन्माला २६८ विचलित न होने दें । (६) अग्रद्वार प्रतिचारी - प्रत्यनीक आदि को अन्दर आने से रोकने के लिए उपाश्रय के मुख्य द्वार पर बैठे रहने वाले साधु । (७) भक्त प्रतिचारी - जो साधु आवश्यकता पड़ने पर माहार लाकर देते हैं वे भक्त प्रतिचारी कहलाते हैं । (८) पान प्रतिचारी - श्रावश्यकता पड़ने पर पानी की व्यवस्था करने वाले साधु पान प्रतिचारी कहलाते हैं । (६) पुरीष प्रतिचारी - जो ग्लान साधु को शौच बैठाते हैं तथा पुरीष (बड़ी नीति) वगैरह को परठाते हैं । (१०) प्रावण प्रतिचारी - प्रस्रवण (लघु नीति) परठाने वाले । (११) वहिः कथक - वाहर लोगों को धर्मकथा सुनाने वाले, जिससे तपस्या और संयम के प्रति लोगों की श्रद्धा बढ़े । (१२) दिशासमर्थ - ऐसे बलवान् साधु जो छोटे मोटे चाकस्मिक उपद्रवों को दूर कर सकें। इन में प्रत्येक कार्य के लिए चार चार साधु होते हैं। इस लिए ग्लान प्रतिचारियों की उत्कृष्ट संख्या ४८ है । (प्रवचनसारोद्धार ७१ वां द्वार गाथा ६२९) (नवपद प्रकरण सलेखना द्वार गाथा १२९) ७६८ - बालमरण के बारह भेद असमाधि पूर्वक जो मरण होता है वह बालमरण कहलाता है । इसके बारह भेद हैं (१) वलन्मरण - तीत्र भूख और प्यास से छटपटाते हुए प्राणी का मरण वलन्मरण कहलाता है अथवा संयम से भ्रष्ट प्राणी का मरण वलन्मरण कहलाता है । (२) वसहमरण - इन्द्रियों के वशीभूत दुखी प्राणी का मरण वसडमरण कहलाता है। जैसे दीप की शिखा पर गिर कर प्राय देने वाले पतंगिये का मरण ।
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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