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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग २५५ जलने से क्या होगा ? मैं दीक्षा ले लेता हूँ । श्रेणिक को अधिक दुःख न हो, इस उद्देश्य से अभयकुमार ने सारी बातें ठीक र कह दीं। शीलवती चेलना को दुर्धारित्र समझना भाव से अननुयोग है। बाद में सचरित्र समझना भाव से धनुयोग है। इसी प्रकार औदयिक आदि भावों की विपरीत प्ररूपणा करना ननुयोग है। उन्हें ठीक ठीक समझना अनुयोग है । ( हरिभद्रयावश्यक गाथा १३४) (बृहत्क्ल्य नियुक्ति पूर्वपाठिका गाथा १७१-१७२) ७८१ - जैन जैन साधु के लिए मार्ग प्रदर्शक चारह गाथाएं उत्तराध्ययन सूत्र के इक्कीसवें अध्ययन का नाम 'समुद्र पालीय' 1 है । इसमें समुद्रपाल मुनि का वर्णन किया गया है । इस अध्ययन मैं कुल २४ गाथाएं हैं। पहले की बारह गाथाओं में समुद्रपाल के जन्म और वैराग्योत्पत्ति के कारण आदि का कथानक दिया गया है। तेरह से चौवीस तक की गाथाओं में जैन साधु के उद्दिष्ट मार्ग का कथन किया गया है। यहाँ पर पहले की बारह गाथाओं में वर्णित समुद्रपाल का कथानक लिख कर आगे की बारह गाथाओं का क्रमशः भावार्थ दिया जायगा । चम्पा नाम की नगरी में पालित नाम का एक व्यापारी रहता था। वह श्रमण भगवान् महावीर का श्रावक था । वह जीव जीव आदि नौ तत्वों का ज्ञाता और निर्ग्रन्थ प्रवचनों (शास्त्रों) में बहुत कुशल कोविद (पण्डित) था। एक बार व्यापार करने के लिए जहाज द्वारा पिहुएड नामक नगर में आया । पिहुण्ड नगर में चाकर उसने अपना व्यापार शुरू किया । न्याय नीति एवं सचाई और ईमानदारी के साथ व्यापार करने से उसका व्यापार बहुत चमक उठा । सारे शहर मे उसका यश और कीर्ति फैल गई । पिहुएड
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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