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________________ - २४६ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला लिए आते ही दीपक को वुझा देगी। श्रावक ने उसकी बात मान ली। शाम के समय श्रावक की स्त्री ने अपनी सखी के लाए हुए कपड़े पहिन कर उसी के समान अपना श्रृङ्गार कर लिया | गुटिका आदि के द्वारा अपनी आवाज भी उसी के समान बना ली। इसके बाद प्रतीक्षा में बैठे हुए अपने पति के पास चली गई। दूसरे दिन श्रावक को बहुत पश्चात्ताप हुआ। उसने समझा मैंने अपनाशील बनखण्डित कर दिया । भगवान ने शील का बहुत महत्व बताया है। उसे खोकर मैंने बहुत बुरा किया। पश्चाचाप के कारण वह फिर दुर्वल होने लगा। उसकी स्त्री ने इस बात को जान कर सच्ची सच्ची बात कह दी। श्रावक इससे बहुत प्रसन्न हुआ' और उसका चित्त स्वस्थ हो गया। __ अपनी स्त्री को भी दूसरी समझने के कारण यह भाव से अननुयोग है। अपनी को अपनी समझना भाव से अनुयोग है। इसी प्रकार प्रौदयिक आदि भावों को उनके स्वरूप से उल्टा समझना भाव से अननुयोग है । उनको ठीक ठीक समझना अनुयोग है। (७) साप्तपदिक का उदाहरण-किसी गाँव में एक पुरुष रहता। था । वह सेवा करके अपनी आजीविका चलाता था।धर्म की बातें कभी न सुनता | साधुओं के दर्शन करने कभी न जता और न उन्हें ठहरने के लिए जगह देता था। वह कहता था-साधु परधन और परस्त्री आदि के त्याग का उपदेश देते हैं। मैं उन नियमों को नहीं पाल सकता । इस लिए उनके पास जाना व्यर्थ है। एक बार कुछ साधु चौमासा करने के लिए वर्षाकाल शुरू होने से पहले उस गांव में आए। उस सेवक के मित्र कुछ गाँव वालों ने मजाक करने के लिए साधुओं से कहा- उस घर में साधुओं का भन एक श्रावक रहता है। उसके पास जाने पर आप को स्थान
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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