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________________ श्री जैन सिद्धान्त वोल सग्रह, चौथा भाग २४३ ताक कर धनुष खींचे हुए वैठे थे। उन्हें देख कर वह जोर से जय जय कहने लगा। उसे सुन कर सभी हिरण डर गए और भाग गए। शिकारियों ने उसे पीट कर वॉध दिया। इसके बाद उसने कहा-मुझे माँ ने सिखाया था कि जो कोई मिले उसे जय जय कहना । इसी लिए मैने ऐसा किया था। शिकारियों ने उसे भोला समझ कर छोड़ दिया और कहा-ऐसी जगह चुपचाप, सिर मुका कर विना शब्द किए धीरे धीरे आना चाहिए। उनकी बात मानकर वह आगे बढ़ा । कुछ दूर जाने पर उसे धोवी मिले । नित्यप्रति उनके कपड़े चोरी चले जाते थे, इस लिए उस दिन लाठियों लेकर छिपे बैठे थे। इतने में वह ग्रामीण धीरे धीरे, सिर नीचा करके चुपचाप वहाँ पाया । घोषियों ने उसे चोर समझ कर बहुत पीटा और रस्सी से बाँध दिया । उसकी बात सुनने पर धोपियों को विश्वास हो गया। उन्होंने उसे छोड़ दिया और कहा-ऐसी जगह कहना चाहिए कि खार पड़े और सफाई हो। ग्रामीण आगे बढ़ा । एक जगह बहुत से किसान विविध प्रकार के मङ्गलों के बाद पहले पहल हल चलाने का मुहूर्व कर रहे थे। उसने वहाँ जाकर कहा-खार पड़े और सफाई हो। किसानों ने उसे पीट कर बाँध दिया । उसकी बात से भोला समझ कर उन्होंने उसे छोड़ दिया और कहा-ऐसे स्थान पर यह कहना चाहिए कि खूप गाडियाँ मरें । बहुत ज्यादह हो । सदा इसी प्रकार होता रहे । उनकी वात मंजूर करके वह आगे बढ़ा। सामने कुछ जोग मुर्दे को लेना रहे थे । ग्रामीण ने किसानों की सिखाई हुई वात कही। उन लोगों ने उसे पीटा और भोला जान कर छोड़ते हुए कहा-ऐसी जगह कहना चाहिए कि ऐसा कभी न हो । इस प्रकार का वियोग किसी को न हो। यही बात उसने आगे जाकर एक विवाह में कहदी। पीटने के बाद उन लोगों ने सिखाया
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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