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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग २४१ चीतने पर भी कर रहा था। एक सम्यग्दृष्टि देव ने सोचा किसी मिथ्याप्टिदेव द्वारा उपद्रव न हो इस लिए इसे चेता देना चाहिए। यह सोच कर वह गूजरनी का रूप धारण कर के सिर पर छाछ का घड़ा लेकर साधु के पास आकर जोर जोर से चिल्लाने लगालो मट्ठा, लो मट्ठा। उसके कर्णकटु शब्द को सुन कर साधु ने पूछा-क्या यह मढे का समय है? देव ने कहा-जैसे तुम्हारे लिए यह समय सज्झाय का है उसी तरह मेरे लिए मढे का है। साधु को समय का खयाल आगया और उसने 'मिच्छामि दुकाई कहा। देव ने उसे समझाया और कहा-मिथ्यादृष्टि देव के उपद्रव से बचाने के लिए मैंने तुम्हें चेताया है, फिर कभी अकाल में स्वाध्याय मत करना। सूत्र की सन्झाय अकाल में फरना काल से अननुयोग है। कालिक सूत्र की सज्झाय ठीक समय पर करना काल का अनुयोग है। वचन के अनुयोग तथा अननुयोग के लिए दो उदाहरण हैबधिरोल्लाप और ग्रामेयक। (४) वधिरोल्लाप का उदाहरण-किसी गाँव में एक वहरों का परिवार रहता था। उस में चार व्यक्ति थे-वृद्धा, बुढ़िया, उनका बेटा और बेटे की बहू । एक दिन वेटा खेत में हल चला रहा था। कुछ मुसाफिरों ने उससे रास्ता पूछा । उसने समझा ये बैलों के विषय में पूछ रहे हैं, इस लिए उत्तर दिया-य चल मेरे घर में ही पैदा हुए हैं। किसी दूसरे के नहीं हैं। मुसाफिर उसे बहरा समझ कर आगे चले गए । इतने में उस की स्त्री गेटी देने के लिए आई। उस ने अपनी स्त्री से कहा- 'मुसाफिर मुझे चैलों के विषय में पूछते थे मैंने उत्तर दिया कि ये मेरे घर पैदा हुए हैं। स्त्री भी. वहरी थी। वह समझी मुझे भोजन में अधिक नमक पड़ने के विषय में पूछा जा रहा है । उस ने उत्तर दिया-भोजन खारा है या
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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