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________________ श्री जेन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग २२३ के उपपात, उपपातविरह, उर्द्धतना, उर्द्धतनाविरह, सान्तर और निरन्तर उपपात और उर्द्धतना, परभव का श्रायुबन्ध इत्यादि वातों का वर्णन किया गया है। सातवें उच्छासपद में चौबीस दण्डक के जीवों की अपेक्षा उच्छ्वास काल का परिमाण बतलाया गया है। आठवें संज्ञा पद में संज्ञा, उपयोग और अल्पबहुत्व का निरूपण 'किया गया है | नवा योनिपद है, इसमें शीत, उष्ण और शीतोष्ण तीन प्रकार की योनियों का वर्णन है तथा योनि के कूर्मोन्नता, शंखावर्ता और वंशीपत्रा आदि भेद किए गए हैं। किन जीवों के कौनसी योनि होती है और कौन से जीव किस योनि में पैदा होते हैं इत्यादि बातों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। दसवां चरमाचरम पद है, इसमें रत्नप्रभा पृथ्वी आदि तथा परमाणु और परिमण्डल आदि संस्थानों की अपेक्षा चरम और चरम का निरूपण है । ग्यारहवें पद का नाम भाषापद है, इसमें सत्य - भाषा, असत्यभाषा आदि भाषा सम्बन्धी मेदों का विचार किया गया है । भाषा के लिङ्ग, वचन, उत्पत्ति आदि का भी विचार किया 1 गया है । भाषा के दो भेद - पर्याप्तभाषा और अपर्याप्तभाषा | पर्याप्त सत्यभाषा के जनपद सत्य आदि दस भेद | पर्याप्त मृषाभापा के क्रोधनिश्चित आदि दस भेद । अपर्याप्त भाषा के दो भेद | पर्याप्त सत्यामृपा भाषा के दस मेद । अपर्याप्त असत्यामृषा भाषा के वारह मेद । भाषाद्रव्य, भाषा द्रव्य का ग्रहण, वचन के सोलह भेद, कैसी भाषा बोलने वाला आराधक और विराधक होता है, भाषा सम्बन्धी अल्पबहुत्व आदि विषयों का विस्तारपूर्वक वर्णन है। बारहवाँ शरीर पद है - इसमें श्रदारिकादि पाँच शरीरों का वर्णन है । तेरहवें परिणाम पद में जीव के दस परिणाम और अजीव के दस परिणामों का वर्णन किया गया है। चौदहवें कषाय पद में कपायों के भेद, उत्पत्तिस्थान, आठ कर्मों के चय, उपचय आदि का
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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