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________________ २१८ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला का विचार उत्पन्न हुआ और अपने आमियोगिक देवों को लेकर भगवान् के समवसरण में पाया । भगवान् को वन्दना नमस्कार करके बैठ गया। बाद में उसने बत्तीस प्रकार के नाटक करके बतलाये और वापिस अपने स्थान पर चला गया। स्त्र में बतीस नाटकों का वर्णन बहुत विस्तार के साथ किया गया है। सूर्याम देव की ऐसी उत्कृष्ट ऋद्धि को देख कर गौतम स्वामी ने भगवान् से उसके विमान आदि के बारे में पूछा। भगवान ने इसका विस्तार के साथ उत्तर दिया है । विमान, वनखण्ड, सभा मण्डप आदि का बहुत विस्तार से वर्णन किया गया है। सूर्याभ देव को यह ऋद्धि कैसे प्राप्त हुई ? गौतम स्वामी के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान ने उसका पूर्वभव बतलाया। सूर्याम देव का जीव पूर्वमव में राजा परदेशी था। -केकय देश की श्वेताम्बिका नगरी में राजा परदेशी राज्य करता था। उसकी रानी का नाम सूर्यकान्ता और पुत्र का नाम सूर्यकान्त था । राजा शरीर से मिल जीव को नहीं मानता था और बहुत क्रूरकर्मी था । चित्त सारथि की प्रार्थना स्वीकार कर केशीश्रमण वहाँ पधारे। घोड़ों की परीक्षा के पहाने चित्त सारथि राजा को केशीश्रमण के पास ले गया। राजा परदेशी ने जीव के विषय में छ. प्रश्न किए। केशीश्रमण ने उनका उचर बहुत युक्ति पूर्वक दिया। (श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह द्वितीय भाग के छठे बोल संग्रह के चोल नं०४६६ में राजा परदेशी के छः प्रश्न बहुत विस्तार के साथ दिए गए हैं) जिससे राजा की शकाओं का भली प्रकार समाधान होगया। राजा ने मुनि के पास श्रावक के व्रत अङ्गीकार किए और अपने राज्य एवं धन की सुव्यवस्था कर उसके चार भाग कर दिए अर्थात् अपने अधीन सात हजार गाँवों को चार भागों में विमक' कर दिया। एक विमाम राज्य की व्यवस्था के लिए, दूसरा भाग
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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