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________________ २१० श्री सेठिया जन प्रन्थमाला जिससे उन्हें अत्यन्त वेदना होती है। इस प्रकार अपने पूर्वकृत पापों का फल भोगते हुए बहुत लम्बे काल तक वहाँ रहते हैं। वहाँ से निकल कर प्रायः तिर्यश्च गति में जन्म लेते हैं। वहाँ परवश होकर वध बन्धन आदि अनेक कष्ट सहन करने पड़ते हैं। यदि कदाचित मनुष्य गति में जन्म ले ले तो ऐसा प्राणी या विरूप और हीन एवं विकृत अङ्ग वाला अन्धा, काना, खोड़ा, लला, वहगादि होता है। वह किसी को प्रिय नहीं लगता । जहाँ जाता है वहाँ निरादर पाता है। इस प्रकार हिंसा का महादुःखकारी फल भोगता है। इसके फल को जान कर हिंसा का त्याग करना चाहिए। (२) मृषावाद अध्ययन इस में मृषावाद का कथन किया गया है। असत्य वचन, माया, कपट एवं अविश्वास का स्थान है। अलीक, माया, मृषा, शठ श्रादि इसके गुणनिष्पन्न तीस नाम हैं। यह असत्य वचन असंयती, अविरती, कपटी, क्रोधी आदि पुरुषों द्वारा घोला जाता है। कितनेक लोग अपने मत के प्रचार के लिए भी झूठे वचनों का प्रयोग करते हैं। परलोक को न मानने वाले तो यहाँ तक कह डालते हैं कि प्राणातिपात, मृषावाद, अश्चादान, परस्त्री गमन और परिग्रह इनके सेवन में कोई पाप नहीं लगता है क्योंकि स्वर्ग नरक श्रादि कुछ नहीं है। कितनों का कथन है कि यह जगत भएडे से उत्पन्न हुआ है और कितनेक कहते हैं कि स्वयंभू ने सृष्टि की रचना की है इत्यादि रूप से असत्य वचन का प्रयोग करते हैं। प्राणियों की बात करने वाला वचन सत्य शेते हुए भी असत्य ही है। इस प्रकार सूत्र में असत्य वचन को बहुत विस्तार के साथ मतलाया है। इसके आगे असत्य का फल बतलाया गया है। प्रसत्यवादी पुरुष को नरक वियञ्च भादि में जन्म लेकर अनेक दुख भोगने पड़ते हैं।
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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