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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग १६७ । दिया कि कोई पुरुष किसी काम के लिए शहर से बाहर न निकले। राजगृह नगर में सुदर्शन नाम का एक सेठ रहता था। वह नव तथ्य का ज्ञाता श्रावक था । राजगृह नगर के बाहर गुणशील चैत्य में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी का आगमन सुन कर सेठ सुदर्शन अपने माता पिता की आज्ञा लेकर भगवान् को वन्दना करने के लिए जाने लगा। मार्ग में अर्जुनमाली उसे मारने के लिए दौड़ कर श्रया । इसे उपसर्ग समझ कर सेठ सुदर्शन ने सागारी अनशन कर लिया । अर्जुन माली नजदीक आकर सेठ सुदर्शन पर अपना मुद्गर चलाने लगा किन्तु उसका हाथ ऊपर ही रुक गया, मुद्गर नीचे नहीं गिरा । उसने बहुत प्रयत्न किया किन्तु सुदर्शन के ऊपर मुद्गर I चलाने में समर्थ नहीं हुआ । इससे यह बहुत लज्जित हुआ और उसके शरीर से निकल कर भाग गया। अर्जुनमाली एक दम जमीन पर गिर पड़ा | सुदर्शन श्रावक ने अपना उपसर्ग दूर हुआ जान कर सागारी अनशन पार लिया। एक मुहूर्त के बाद अर्जुन माली को चेत श्राया । वह उठ कर सुदर्शन श्रावक के पास श्राया यक्ष और उसके साथ भगवान् को वन्दना करने के लिए जाने की इच्छा प्रगट की । सुदर्शन श्रावक उसे अपने साथ ले गया । भगवान् को वन्दना नमस्कार कर अर्जुनमाली बैठ गया । भगवान् ने धर्मकथा फरमाई जिससे उसे वैराग्य भाव उत्पन्न हो गया और दीक्षा अडीकार कर बेले वेले पारणा करता हुआ विचरने लगा । अनगार हो कर वह भिक्षा के लिए राजगृही में गया, उसे देख कर कोई कहता इसने मेरे पिता को मारा, भाई को मारा, भगिनी को मारा, पुत्र को मारा, माता को मारा इत्यादि कह कर कोई निन्दा करता, कोई हल्के शब्दों का प्रयोग करता. कोई चपेटा मारता, कोई घूँसा मारता, किन्तु अर्जुनमाली अनगार इन सब को समभाव से सहन करते थे और विचार करते थे कि मैंने तो इनके सगे सम्ब-धियों को जान - り
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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