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________________ - १६ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (११) अध्ययन-धर्म की आराधना और विराधना के लिए दावदव का दृष्टान्त । (१२) अध्ययन-सद्गुरु सेवा के लिए उदकज्ञात का दृष्टान्त । (१६) अध्ययन सद्गुरु के अभाव में गुणों की हानि बताने के लिए ददुर का दृष्टान्त । (१४) अध्ययन-धर्म प्राप्ति के लिए अनुकूल सामग्री की आवश्यकता बताने के लिए तेतलीपुत्र का दृष्टान्त । (१५)अध्ययन-चीतराग के उपदेश से ही धर्म प्राप्त होता है, इसके लिए नंदीफल का दृष्टान्त । (१६) अध्ययन-विषयसुख का कड़वा फल बताने के लिए अपरका के राजा और द्रौपदी की कथा । (१७) अध्ययन-इन्द्रियों के विषयों में लिप्त रहने से होने वाले अनर्थों कोसमझाने के लिए आकीण जाति के घोड़े का दृष्टान्त । (१८) अध्ययन-संयमी जीवन के लिए शुद्ध और निर्दोष श्राहार निर्ममत्व भाव से करने के लिए सुषुमा कुमारी का दृष्टान्त । (१६) अध्ययन-उत्कृष्ट भाव से पालन किया गयाथोड़े समय का संयम भी अत्युपकारक होता है, इसके लिए पुंडरीक का दृष्टान्त । इन कथाओं को विस्तृत रूप से १६ वें बोल संग्रह में दिया जायगा। दूसरा श्रुतस्कन्ध इसमें धर्म कथाओं के द्वारा धर्म का स्वरूप बतलाया गया है (१) वर्ग-पहले वर्ग के पाँच अध्ययन हैं, जिनमें क्रमशः चमरेन्द्र की काली, राजी, रजनी, विद्युत और मेघा नाम की पॉच अग्रमहिषियों का वर्णन है। प्रथम अध्ययन-इसमें काली अग्रमहिषी का वर्णन आता है। , चमरचश्वा राजधानी के कालावतंसक भवन में कालीदेवी अपने परिवार सहित काल नाम के आसन पर बैठी थी। उसो समय उसने
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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