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________________ श्री जेन सिद्धान्त बोल्न संग्रह, चौथा भाग(८) उ०-१५ कर्म भूमि, ३० अकर्म भूमि का अधिकार । वर्तमान अवसर्पिणी के २४ तीर्थङ्करों के नाम, इनका पारस्परिक अन्तर, कालिकश्रुत और दृष्टिवाद के विच्छेद का अधिकार । भगपान् महावीर स्वामी का तीर्थ(शासन)इक्कीस हजार वर्ष तक चलेगा। भावी तीर्थङ्करों में अन्तिम तीर्थङ्कर के शासन की स्थिति। (8) उ०-जंघाचारण और विद्याचारण लन्धि का अधिकार । इनकी ऊपर, नीचे और तिछी गति का विषय । लब्धि का उपयोग करने वाले मुनि के आराधक विराधक का निर्णय। .(१०) उ०-सोपक्रम और निरुपक्रम आयुष्य का वर्णन जीव आत्मोपक्रम, परोपक्रम या निरुपक्रम से उत्पन्न होता है। इसी प्रकार उद्वर्तन और च्यवन के सम्बन्ध में भी जानना चाहिए। कति संचित, अकति संचित और प्रवक्तव्य संचित की वक्तव्यता, इनका पारस्परिक अल्पबहुत्व, समर्जित की वक्तव्यता और अल्पबहुत्व । इक्कीसवॉ शतक इस शतक में आठ वर्ग हैं। प्रत्येक वर्ग में दस इस उद्दशे हैं अर्थात् कुल ८० उद्देशे हैं। प्रथम वर्ग, (१) उ०-शालि, बीहि आदि धान्य एक समय में कितने उत्पन्न हो सकते हैं ? इनकी अवगाहना, कर्मवन्ध, लेश्या आदि का,वर्णन । इनके मूल में जीव कहाँ से उत्पन्न होते हैं ? पनवणा के व्युत्क्रान्ति पद की भलामण । (२-१.) उ०-कन्द, मूल के जीव कैसे और कहाँ से पाकर उत्पन्न होते हैं ? इसका सारा अधिकार पहले उहशे की तरह है। स्कन्ध, त्वचा, शाखा, प्रवाल, कोंपल और पत्ते आदि का वर्णन एक एक उद्देशे में है। आठवें, नवें और दसवे उद्देशे में क्रमशः फूल, फल और बीज का वर्णन है। .. दूसरा वर्ग, (१-१०) उ.-कलाय ( मटर), मघर, तिल, मूंग, ।
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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