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________________ - - श्री जैन सिद्धन्त घोल समह, चौथा भाग १६१ कुमार का उदायन के प्रति द्वेष भाव । मर कर रत्नप्रभा नारकी के पास असुरकुमारों के आवासों में जन्म लेना । वहाँ से निकल कर महाविदेह क्षेत्र में सिद्ध गति को प्राप्त करना। (७) उ०-भाषा क्या है अर्थात् भाषा आत्मा या अनात्मा, रूपी या अरूपी, सचित्त या अचित्त, जीव या अजीव १ इसी तरह काया और मन के विषय में भी प्रश्नोत्तर । मरण के पाँच भेद, प्राविचिकमरण, अवधिमरण, आत्यन्तिकमरण, वालमरण, पंडितमरण प्रत्येक के क्रमशः ५, ५, ५, १२, २ भेद होते हैं । पण्डितमरण के पादपोपगमन और मात्र प्रत्याख्यान रूप दो भेद। इनके भी निरिम और अनि रिम, सप्रतिकर्म और अप्रतिकर्म आदि मेदों का विस्तार पूर्वक वर्णन । (८) उ०-कर्म एवं कर्मप्रकृतियों के विषय में प्रश्न । उचर के लिए पन्नवणा के 'बन्धस्थिति' नामक उद्देशे की भलामण । (E) उ०-लब्धिधारी अनगार जलोक, बीजंबोजक पक्षी, विडालक, जीवंजीवक (चकोर) पची, हंस, समुद्रकाक, चक्रहस्त (निसके हाथ में चक्र है), रत्नहस्त आदि अनेक प्रकार के रूप की विकर्षणा करने की शक्ति रखता है इत्यादि अधिकार । (१०) उ०-छामस्थिक समुद्घात के मेदों के विषय में प्रश्न । उत्तर के लिए श्री पनवणा स्त्र के 'समुद्घात पद की भलामण । चौदहवां शतक (१) उ०-इस शतक के दस उद्देशों की नाम सूचक संग्रह गाथा, भावितात्मा अनगार जो चरम देवावास का उल्लंघन कर परम देवावास को पहुँचा नहीं, वह काल करके कहाँ उत्पन्न हो ? इसी प्रकार असुरकुमार प्रादि के विषय में भी प्रश्नोचर । नैरयिकों की शीघ्रगति, नैरयिक श्रादि २४ दण्डक के जीव अनन्तरोपपन्न हैं, परम्परोपन्न हैं या अनन्तर परम्परानुपपन्न हैं ? इनका
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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