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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल समूह, चौथा भाग १४७ मलामण । सर्व प्राणी भृत जीव सत्व एवं भूत वेदना को वेदते हैं। नरक आदि २४ दण्डक में एवंभूत वेदना का प्रश्न | जम्बूद्वीप के इस अवसर्पिणी काल के सात कुलकर, तीर्थङ्करों के माता, पिता , बलदेव, वासुदेव, प्रतिवासुदेव आदि के विषय में प्ररन। (६) उ०-जीव किस प्रकार से दीर्घायु, अल्पायु, शुभ दीर्घायु, अशुभ दीर्घायु का बन्ध करता है इत्यादि विचार। चोर, पाण, धनुष को कितनी क्रिया लगती हैं ? शय्यातर पिण्ड, आधाकर्मी पिण्ड, आराधना, विराधना आदि विषयक प्रश्न । प्राचार्य, उपाध्याय अपने साधुओं को सूत्रार्थ देते हुए कितने भव करके मोक्ष जाते हैं ? दूसरे पर झूठा कलङ्क चढाने वाले का भव भ्रमण आदि । (७) उ०-- परमाणु पुद्गल, अनन्तप्रदेशी स्कन्ध का विस्तृत विचार । परस्पर स्पर्शना संस्थिति, अन्तरकाल आदि का विचार। चौवीस दण्डक सारम्भी, सपरिग्रही का विचार। पाँच हेतु और पाँच अहेतु का कथन । (८)उ०--श्रमण भगवान महावीर स्वामी के अन्तेवासी शिष्य नारदपुत्र और निर्ग्रन्थीपुत्र की विस्तार पूर्वक चर्चा जीव घटते, बढ़ते या अवस्थित रहते हैं? चौबीस दण्डक के विषय में यही प्रश्न। जीव सोपचय, सापचय, निरुपचय, निरपचय है, इत्यादि का चौवीस दण्डक पर विचार। (8) उ०-राजगृह नगर की वक्तव्यता । दिन में प्रकाश और रात्रि में अन्धकार का प्रश्न । सात नरक और असुर कुमारों में अन्धकार क्यों ? अशुभ पुद्गलों के कारण पृथ्वीकायादि से लेकर तेइन्द्रिय तक अन्धकार | चौरिन्द्रिय, मनुष्य यावत् वैमानिक देवों में शुभ पुद्गल, समय, श्रावलिका आदिकाल का ज्ञान मनुष्य आदि को है, नैरयिक जीवों को नहीं । पार्श्वनाथ मंगवान के शिष्यों को भगवान महावीर का परिचय, चार महानह से गॉच प्रहावर का
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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