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________________ श्री सेठिया जैन अन्यमाला का कथन है कि जीव एक ही समय में इहमव सम्बन्धी और परमव सम्बन्धी आयु का बंध करता है । कालासवेशित नामक साधु के प्रश्नोत्तर । सेठ, दरिद्र, कृपण, राजा आदि को एक अप्रत्याख्यानी क्रिया लगती है । आषाकर्मी आहार विषयक विचार, प्राधाकर्मी आहार भोगने वाले साधु को बन्धने वाली कर्मप्रकृतियों का विचार । (१०) उ०-चलमाणे प्रचलिए, निजरिज्जमणे अणिज्जिरणे इत्यादि विषयक प्रश्नोत्तर एवं विस्तृत विचार । एक जीव एक समय में दो क्रियाएं करने में समर्थ है या नहीं इत्यादि का विस्तृत विचार | नरकगति में नारकी कितने विरह काल से उत्पन्न होते हैं। दूसरा शतक (१)उ०-पृथ्वी कायिक आदि एकेन्द्रिय और बेइन्द्रिय आदि जीवों के श्वासोच्छवास का विचार । वायुकाय की उत्पत्ति का विचार। मड़ाई (प्रासुकमोजी) निन्थ का विचार | प्राण, भूत जीव, सख का विचार । स्कन्दक परिवाजक, पिङ्गल निर्गन्थ और साली श्रावक का अधिकार, बालमरण और पण्डितमरण का विस्तृत विचार। (२) उ०-- समुद्घात के मेदों के लिए प्रश्न | उचर के लिए पन्नवणा के ३६ वे पद का निर्देश ।. (३) उ०- पृथ्वीकायिक जीवों के विषय में प्रश्न | उत्तर के लिये जीवामिगम के दूसो उद्देशे का निर्देश। (४) उ०-इन्द्रियाँ कितनी है ? उत्तर के लिए पन्नवणा के पन्द्रहर्षे पद के पहले उद्देशे का निर्देश। (५) उ०- अन्य यूथिक निन्य मर कर देवगति में जाता । है या नहीं ? एक समय में एक जीव दो वेदों को (स्त्रीवेद और - पुरुषवेद) वेदता है या नहीं ? उदकगर्म (वर्मा का गर्भ) और
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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