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________________ १३२ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला भ्यन्तर मंडत में होने पर पहले मुहूर्त की छाया १६ अंगुल होती है। मेरु पर्वत के पश्चिमी अन्त से गोस्तूम पर्वत का पश्चिमी अन्त ६७ हजार योजन है। इसी प्रकार चारों दिशाओं में अन्तर जानना चाहिए। आठों कर्मों की ६७ उत्तरप्रकृयिाँ हैं । हरिपेण चक्रवर्ती कुछ कम ६७ वर्षे गृहस्थावास में रह कर दीक्षित हुए। 'नन्दनवन के ऊपरी अन्त से पंडक वन का अधोभाग 85 हजार योजन दूर है। मेरु पर्वत के पश्चिमी अन्त से गोस्तूम का पूर्वीय अन्त ६८ हजार योजन अतर पर है। इसी प्रकार चारों दिशाओं में जानना चाहिए । दक्षिण भरत का धनुः पृष्ठ कुछ कम ६८ सौ योजन है। दक्षिणायन के ४६ - मंडल में रहा हुआ सूर्य महत का भाग दिन को घटा देता है और रात को बढ़ा देता है। उत्तरायण में उतना ही दिन को घटा तथा रात को बढ़ा देता है। रेवती से लेकर ज्येष्ठा तक नक्षत्रों के कुल ८ तारे हैं। मेरु पर्वत ६६ हजार योजन ऊंचा है। नन्दन वन के पूर्वीय अन्त से उसका पश्चिमी अन्त'हह सौ योजन है। इसी प्रकार दक्षिणी अन्त से उत्तरी अन्त 88 सौ योजन है । उत्तर में पहले सूर्य मंडल की हजार योजनझामेरी लम्बाई चौड़ाई है। दूसरा और तीसरा सूर्य मंडल साधिक है. हजार योजन लम्वा चौड़ा है। रत्नप्रभा पृथ्वी के अंजन नामक कांड के नीचे के चरमान्त से वायव्यन्तर देवों के ऊपर के चरमान्त का 86 सौ योजन अन्तर है। दशदशमिका नाम भिक्खुडिमा १००दिन में पूरी होती है। शत- . भिषा नक्षत्र के १०० तारे हैं । सुविधिनाथ भगवान् की. अवगाहना १००धनुष की थी । पार्श्वनाथ भगवान् १०० वर्ष की पूर्णायु प्राप्त कर सिद्ध हुए।स्थविर आर्य सुधर्मा भी १०० वर्ष की पूर्णायु प्राप्त कर सिद्ध हुए। प्रत्येक दीर्घ वैताढ्य पर्वत की ऊँचाई १०० कोस है। प्रत्येक चुल्लहिमवान, शिखरी और वर्षधर पर्वत १०० .
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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