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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, चौथा भाग हैं। पुष्कराद्ध में भी ये सभी अड़सठ अड़सठ होते हैं। समय क्षेत्र में मेरु को छोड़कर ६६ वर्ष (वासा) और वर्षधर पर्वत हैं। मंदर पर्वत के पश्चिम के चरमात से गौतमद्वीप के पश्चिम के चरमात का अन्तर ६६ हजार योजन है। मोहनीय को छोड़ बाकी सात कर्मों की ६६ उत्तरप्रकृतियाँ हैं। '' भगवान महावीर के शासन में पचास दिन बीतने पर ७० रातदिन का वर्षाकल्प हता है। भगवान पार्श्वनाथ ७० वर्ष श्रमण पर्याय में रह कर सिद्ध हुए । वासुपूज्य भगवान् की अवगाहना ७० धनुष की थी। मोहनीय कर्म की उत्कट स्थिति ७० कोड़ाकोड़ी सागरोपम है। माहेन्द्र देवलोक में ७० हजार समानिक देव हैं। चौथे चन्द्र संवत्सर की हेमन्त ऋतु में ७१ दिनरात बीतने पर सूर्य आवृत्ति करता है। तीसरे वीर्यप्रवाद नामक पूर्व में ७१ प्राभूत हैं। अजितनाथ भगवान् ७१ लाख पूर्व गृहस्थ रह कर दीक्षित हुए । सगर चक्रवर्ती भी ७१ लाख पूर्व गृहस्थ रह कर दीक्षित हुए। सुवर्णकुमारों के ७२ लाख आवास है। लवण समुद्र की बाह्य वेला को ७२ हजार नाग देवता धारण करते हैं। भगवान् महावीर की आयु ७२ वर्ष की थी। स्थविर अचलमाता की आयु भी ७२ वर्ष की थी। पुष्कराई में ७२ चन्द्र हैं। प्रत्येक चक्रवर्ती के पास ७२ हजार पुर होते हैं। ७२ कलाएं । सम्मूच्छिम खेचर पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चों की उत्कृष्ट श्रायु ७२ हजार वर्ष की होती है। हरिवास और रम्यकवास क्षेत्रों की जीवाएं ७३९०११४+१ योजन लम्बी हैं। विजय नामक बलदेव ७३ लाख वर्ष की आयु पूरी करके सिद्ध हुए। . ___ अग्निभूति गणधर ७४ वर्ष की आयु पूरी करके सिद्ध हुए । सीता और सीतोदा महानदियों की लम्बाई पर्वत पर ७४ सौ योजन है। चौथी को छोड़ कर बाकी छः पृथ्वियों में मिला कर ७४ लाख नरकावास हैं।
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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