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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोलसंग्रह, चौथा भाग १२१ घनुष की थी, सहसार देवलोक के इन्द्र के अधीन ३० हजार सामानिक देव हैं, भगवान् पार्श्वनाथ और महावीर ३० वर्ष तक-गृहस्थावास में रह कर साधु हुए, रत्नप्रभा में ३० लाख नरकावास-है, ३० पल्योपम तथा सागरोपम की स्थिति वाले देव तथा नारकी जीव । सिद्धों के ३१ गुण, मन्दराचल पर्वत का घेरा पृथ्वी पर कुछ कम ३१६२३ योजन है. सूर्य का सर्व वाह्यमण्डल में चतुःस्पर्शगति प्रमाण ३१८३१३० योजन है, अभिवद्धित मास कुछ अधिक ३१ रात दिन का होता है, आदित्य मास कुछ कम ३१ रातदिन का होता है, ३१ पन्योपम तथा सागरोपम की स्थिति वाले देव तथा नारकी जीव । ३२ योगसंग्रह, ३२ देवेन्द्र, कुन्थुनाथ भगवान् के शासन में ३२ सौ ३२ केवली थे, ३२ प्रकार का नात्य, ३२ पल्योपम तथा ३२ सागरोपम की आयु वाले देव तथा नारकी जीव । - ३३ अाशातनाएं, चमरचंचा राजधानी में ३३ मझले महल है। महाविदेह क्षेत्र की चौड़ाई ३३ हजार योजन तृतीय वाह्यमंडल में सूर्य का चक्षुः स्पर्श गति प्रमाण कुछ कम ३३ हजार योजन, ३३ पन्योपम 'तथा सागरोपम की स्थिति वाले देव तथा नारकी जीव । ३४ अतिशय, ३४ चक्रवर्ती विनय, जम्बूद्वीप में २४ दीर्घवाड्या जम्बूद्वीप मे उत्कृष्ट ३४ तीर्थङ्कर होते हैं, चमरेन्द्र के अधीन ३४ लाख भवन है, पहली, पांचवीं, छठी और सातवीं पृथ्वियों मे ३४ लाख नरकावास है। वाणी के ३५ अतिशय, कुन्थुनाथ भगवान् और नन्दन बलदेव की अवगाहना ३५ धनुष, सौधर्म देवलोक की सुधर्मा सभा में माणवक नामक चैत्यस्तम्भ है, उसमें साढे बारह योजन नीचे और साढे बारह योजन ऊपर छोड़ कर बीच मे ३५ योजन वज्रमय गोलाकार समुद्र कडा है उसमें जिन भगवान की दाढाएं हैं। दूसरी और चौथी नारकी मे ३५ लाख नरकावास हैं। ३६ अध्ययन उत्तराध्ययन के, चमरेन्द्र की सुर्धर्मा सभा की ऊँचाई ३६ योजन, भगवान महावीर के शासन में ३६ हजार आर्याएं, चेत्र
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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