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________________ . श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला आदि परिग्रह पर्यन्त, क्रोध, मान, माया, लोभ । राग, द्वेषयावत् परपरिवाद । रति अति, मायामृषा, मिथ्यादर्शन शल्य । प्राणातिपात आदि से विरमण | क्रोध से लेकर मिथ्यादर्शन शल्य तक का विवेक । अवसर्पिणी, सुषमसुषमा आदि आरे, उत्सर्पिणी, दुषमदुषमा आदि धारे। नारकी से लेकर वैमानिक तक २४ दण्डकों में प्रत्येक की एक वर्गणा, भवसिद्धि, अभवसिद्धि, भवसिद्धि नारकी आदि वैमानिक तक की वर्गणा, सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और मिश्रदृष्टि जीवों की वर्गणा, सम्यग्दृष्टि तथा मिथ्यादृष्टि आदि नारकी जीव, कृष्णपक्षी, शक्रपक्षी, कृष्णलेश्या, नीललेश्या, यावत् शुक्ललेश्या वाले जीव, नारकी आदि जीवों में लेश्या, । कृष्ण लेश्या और तीनों दृष्टियाँ, इसी प्रकार आठ प्रकार से २४ दंडकों की वर्गणा | तीर्थसिद्ध यावत् अनेकसिद्ध, प्रथम समय सिद्ध यावत् अनन्त समय सिद्ध, परमाणपुद्गल यावत् अनन्तप्रादेशिकस्कन्ध, एक प्रदेशावगाढ यावत् असंख्यात प्रदेशावगाढ, एक समय स्थिति वाले यावत् असंख्यात समय स्थिति वाले, एक गुणकाल यावत् असंख्यात गुणकाल तथा अनन्तगुणकाल वाले पुद्गलों की वर्गणा, इसी तरह वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श आदि वाले पुद्गल, जघन्य प्रदेशों वाले स्कन्ध, जघन्य, उत्कृष्ट प्रदेशों वाले स्कन्ध, मध्यम प्रदेशों वाले स्कन्ध, जघन्य उत्कृष्ट तथा मध्यम अवगाहना वाले, जघन्य, मध्यम तथा उत्कृष्ट स्थितिषाले,जघन्य,मध्यम तथा उत्कृष्ट काल वाले इसी प्रकार जघन्य वर्णादि वाले, पुद्गलों की वर्गणा । जम्बूद्वीप और सभी द्वीप समुद्रों की परिधि, अन्तिम तीर्थकर भगवान् महावीर, अनुत्तरोपपतिक देवों की ऊँचाई एक रत्नि प्रमाण । एक तारें वाले नक्षत्र, एक प्रदेशावगाढ, एक समय स्थिति वाले, एक गुण काल वाले यावत् एक गुण रूखे अनन्त पुद्गल । दसरा अध्ययन (द्विस्थानक)-लोक में दो पदार्थ-जीव,
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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