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________________ ७६ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला करना चाहिए और क्या न करना चाहिए। ग्यारहवाँ अध्ययन-मोक्षमार्ग । मार्ग की यतना। चारहवाँ अध्ययन-वादियों की चर्चा । मतों का वर्णन । चार मतों का स्वरूप । भूतवाद, विनयवाद, अक्रियावाद और क्रियावाद । तेरहवाँ अध्ययन-कुछ स्पष्ट बातें । साधु के कुछ कर्तव्य । चौदहवाँ अध्ययन-~-ज्ञान कैसे प्रास करे।निर्ग्रन्थों का स्वरूप। पन्द्रहवाँ अध्ययन-उपसंहार,यमक,विविध पातों का निरूपण । सोलहवाँ अध्ययन-गाथाएं । सच्चे साधु का गुण कीर्तन । द्वितीय श्रुतस्कन्ध-प्रथम अध्ययन-पुंडरीक । कमल की उपमा । विविध भौतिकवादी । वैशेषिक दर्शन के प्रारम्भिक रूप को मानने वाले । वेदान्ती। नियतिवादी। सत्य मार्ग को अपनाने के लिए उपदेश। द्वितीय अध्ययन-तेरह क्रियास्थान । तेरह प्रकार से किया जाने वाला पाप । दोष रहित क्रिया। कुछ पाप क्रियाएं । साधु तथा श्रावक का चारित्र । ३६३ मतों का खण्डन । उपसंहार। तृतीय अध्ययन-आहार विचार राजीवोत्पत्ति के स्थान अर्थात सृष्टिविकास तथा विविध भेद । चौथा अध्ययन-प्रत्याख्यान | दुनियों के कामों से छुटकारा पाना। - पाँचवाँ अध्ययन-सदाचार घातक मान्यताएं । भूलों से छुटकारा पाना। ___ छठा अध्ययन-पाक कुमार । पाक मुनि का गोशालक आदि के साथ संवाद । इसी तरह बौद्ध, वैदिक, बामण, वेदान्ती और हस्तितापस का खण्डन । ___ सातवाँ अध्ययन-नालन्द । उदकमुनि जो भगवान् पार्श्वनाथ का शिष्यानुशिष्य था, उसका भगवान् महावीर के शासन
SR No.010511
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year2051
Total Pages506
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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