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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल. संग्रह नर्मदा नदी के दूसरे तट पर एक ग्वाला रहता था। ब्राह्मणी का उसके साथ अनुचित सम्बन्ध था। एक दिन रात्रि में वह घड़े से तैरती हुई नदी पार कर ग्वाले के पास जा रही थी। कुछ चोर भी तैरते हुए नदी पार कर रहे थे । उन्होंने उसे पकड़ लिया। चोरों में से एक को मगर ने पकड़ लिया। वह चिल्लाने लगा । ब्राह्मणी बोली-- मगर की आँखें ढक दो। ऐसा करने पर मगर छोड़ दिया | वह फिर बोली- क्या किसी खराब किनारे पर लग गये हैं ? वह छात्र यह सब जान कर चुप चाप लौट या । दूसरे दिन ब्राह्मणी बलि करने लगी । रक्षा के लिए उसी लड़के की बारी थी । वह एक गाथा में बोला- दिन को hi से डरती हो, रात को नर्मदा पार करती हो । पानी में उतरने के बुरे रास्ते और आँखें ढकना भी जानती हो । वह बोली- क्या करूं ? जब तुम्हारे सरीखे पसन्द नहीं करते । उसी के पीछे पड़ गई और कहने लगी, मुझ से प्रेम करो । छात्र बोला - गुरुजी के सामने मैं कैसे ठहर सकूँगा । वह सोचने लगी, अगर इस अध्यापक को मार डालूँ तो यह छात्र मेरा पति बन जायगा । यह सोचकर उसने अपने पति को मार डाला और एक पेटी में बन्द कर के जंगल में छोड़ने चली गई। जब वह पेटी को नीचे उतार रही थी, उसी समय एक व्यन्तर देवी ने स्तम्भत कर दिया अर्थात् पेटी को सिर से चिपा दिया । पेटी उसके सिर पर ही रह गई । वह जंगल में घूमने लगी । भूख मिटाने को भी कुछ नहीं मिला । ऊपर से खून टपकने लगा। सभी लोग उस की हीलना करने लगे और कहने लगे कि यह पति को मारने वाली घूमती है । ३५ धीरे धीरे वह अपने किए पर पछताने लगी । आत्मनिन्दा की र प्रवृत्त हुई। किसी के दरवाजे पर भीख मांगने जाती !
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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