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________________ भी जैनसिद्धान्त बोल संग्रह २७ अर्थात्- हे आम्रवृक्ष ! अधिक मास के हो जाने पर यदि क्षुद्र कर्णिकार (कनेर) के वृक्ष अपनी ऋतु से पहले ही खिल गए तो भी तुम्हें खिलना शोभा नहीं देता। क्योंकि अगर नीच लोग कोई बुरी बात करें तो क्या तुम्हें भी वह करनी चाहिए ? राजकन्या सोचने लगी-यहाँ वसन्त ऋतु ने आम को उलाहना दिया है। यदि सब वृक्षों में चद्र कनेर खिल गया तो क्या प्राम को भी खिलना चाहिए ? क्या आम ने अधिकमास की घोषणा नहीं सुनी। इसने ठीक ही कहा है । जो जुलाहे की लड़की करे क्या मुझे भी वही करना चाहिए ? 'मैं रत्नों का पिटारा भूल आई हूँ' यह बहाना बनाकर वह वापिस लौट आई। उसी दिन एक सबसे बड़े सामन्त का लड़का अपने पैतृक सम्पत्ति के हिस्सेदार भाई बन्धुओं द्वारा अपमानित होकर राजा की शरण में आया । राजा ने वह लड़की उसे ब्याह दी। सामन्तपुत्र ने उस राजा की सहायता से उन सब भाइयों को जीत कर राज्य प्राप्त कर लिया। वह लड़की पटरानी बन गई। ___ यहाँ कन्या के सरीखें साधु विषय विकार रूपी धृतों के द्वारा आकृष्ट कर लिए जाते हैं । इसके बाद प्राचार्य के उपदेश रूपी गीत के द्वारा जो वापिस लौट जाते हैं वे अच्छी गति को प्राप्त करते हैं। दूसरे दुर्गति को। दूसरा उदहारण-किसी गच्छ में एक युवक साधु शास्त्र के ग्रहण और धारण में असमर्थ था। आचार्य उसे दूसरे कार्यों में लगाए रखते थे। एक दिन अशुभ कर्म के उदय से दीक्षा छोड़ देने का विचार करके वह चला गया। बाहर निकलते हुए उसने यह गाथा सुनी तरियव्वाय पाइपिणया मरियया समरे समस्थएणं। असरिसजण-उल्लावा न हु सहिव्वा कुलपसूयएणं॥
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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