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________________ श्री जैन लियात पोल मेपह देना संग्रह दान है। यहदान अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए होता है, इसलिए मोक्ष का कारण नहीं होता।... . अभ्युदये व्यसने वा यत् किञ्चिदीयतेसहायतार्थम्। तत्संग्रहतोऽभिमतं मुनिभिर्दानन मोक्षायः॥..: अर्थात-अभ्युदय में या आपत्ति माने पर दूसरे की सहायता प्राप्त करने के लिए जो दान दिया जाता है वह संग्रह (सहायता प्राप्ति) रूप होने से संग्रह दान है। ऐसा दान मोक्ष के लिए नहीं होता। (३)भयदान-राजा,मंत्री, पुरोहित आदि के भय से अथवा राक्षस एवं पिशाच आदि के डर से दिया जाने वाला दान भयदान है। राजारक्षपुरोहितमधुमुखमाविल्लदण्डपाशिषु च / यहीयते भयात्तयदानं बुधै यम् // अर्थात्- राजा, राक्षस या रक्षा करने वाले, पुरोहित, मधु मुख अर्थात् दुष्ट पुरुष जो मुँह का मीठा और दिल का कालाहो, मायावी,दण्ड अर्थात् सजा वगैरह देने वाले राजपुरुष इत्यादि को भय से बचने के लिए कुछ देना भय दान है। (4) कारुण्य दान-पुत्र आदि के वियोग के कारण होने वाला शोक कारुण्य कहलाता है। शोक के समय पुत्र आदि के नाम से दान देना कारुण्य दान है। (5) लज्जादान- लज्जा के कारण जो दान दिया जाता है वह लज्जा दान है। अभ्यर्थितः परेण तु यहानं जनसमूहगतः। परचित्तरक्षणार्थ लजायास्तवेदानम् / / अर्थात्- जनसमूह के अन्दर बैठे हुए किसी व्यक्ति सेजक कोई आकर मांगने लगता है उस समय मांगने वाले की बात रखने के लिए कुछ दे देने को लज्जादान कहते हैं। . . . .
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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