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________________ 130 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला (1) बन्धन परिणाम- अजीव पदार्थों का आपस में मिलना अर्थात् स्नेह हेतुक या रूक्षत्व हेतुक बन्ध होना बन्धन परिणाम कहलाता है। इसके दो भेद हैं- स्निग्धवन्धन परिणाम और रूक्षबन्धन परिणाम।स्निग्ध और रूक्षस्कन्धों का तुल्य गुण वाले स्निग्ध और रूक्ष स्कन्धों के साथ सजातीय तथा विजातीय किसी प्रकार का बन्ध नहीं होता है किन्तु विषम गुण वाले स्निग्ध और रूत स्कन्धों का समातीय तथा विजातीय बन्ध होता है। स्निग्ध का अपने से द्विगुणादि अधिक स्निग्ध के साथ और रूक्ष का द्विगुणादि अधिक रूक्ष के साथ बन्ध होता हैं / जघन्य गुण (एक गुण)वाले रूक्ष को छोड़ कर अन्य समान या असमान रूक्ष स्कन्धों के साथ स्निग्ध का बन्ध होता है। इसका यह तात्पर्य है .कि जघन्य गुण (एक गुण) वाले स्निग्ध और जघन्य गुण (एक गुण) वाले रूक्षको छोड़ कर शेष समान गुण वाले याविषम (असमान)गुण वाले स्निग्ध तथा रूतस्कन्धों कापरस्पर सजातीय एवं विजातीय बन्ध होता है। पुद्गलों के बन्ध का विचार श्री उमास्वाति ने तत्त्वार्थ सूत्र के पाँचवें अध्याय में विस्तार से किया है। यथा-'स्निग्धरूक्षत्वाद्वन्धः स्निग्धता से या रूक्षता से पुद्गलों का परस्पर बन्ध होता है अर्थात् स्निग्ध (चिकने) और रूक्ष (रूखे) पुद्गलों के संयोग से स्नेहहेतुक या रूतत्वहेतुक पन्ध होता है। यह बन्ध सजातीय बन्ध और विजातीय बन्ध के भेद से दो प्रकार का है। स्निग्ध का स्निग्ध के साथ और रूक्षका रूक्ष के साथ बन्ध सजातीय अथवा सदृशबन्ध कहलाता है। स्निग्ध और रूत पुद्गलों का परस्पर बन्ध विजातीय या विसदृश बन्ध कहलाता है। __उपरोक्त नियम सामान्य है, इसका अपवाद बतलाया जाता है। 'न जघन्य गुणानाम्' अर्थात् जघन्य गुण वाले (एक गुण वाले)
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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