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________________ श्री जैन सिद्धान्त कोल संग्रह .105 rainerarwww..... जो गणित किया जाता है, वह कलासवणे है। (6) जावंतावइ (यावत्तावत्)- एक संख्या को उसी से गुणा करना / अथवा किसी संख्या का एक से लेकर जोड़ निकालने के लिए गुणा वगैरह करना / इसका क्रम इस प्रकार हैगच्छो वाञ्छाभ्यस्तोवाञ्छयुतो गच्छसंगुणः कार्यः। द्विगुणीकृतवाञ्छहृते वदन्ति सङ्कलितमाचार्याः॥ - अर्थात्- एक से लेकर किसी संख्या का जोड़ करने के लिए जिस संख्या तक जोड़ करना हो उसे अपनी इच्छानुसार किसी संख्या से गुणा करे। गुणनफल में जिस संख्या से गुणा किया गया है, उसे जोड़ दे। इससे प्राप्त संख्या को जोड़ की जाने वाली संख्या से गुणा करे / वाञ्छित संख्या को (जिससे पहले पहल गुणा किया था) दुगुना करके गुणन फल को भागदे देवे। इस से जोड़ निकल आएगा। जैसे- एक से लेकर दस तक का योग फल निकालना है। उसे अपनी मरजी के अनुसार किसी भी संख्या से गुणा कर दिया जाय। आठ से गुणा किया जाय तो अस्सी हो जायगा। यहाँ सुविधा के लिए पहले (10) संख्या का नाम गच्छ तथा दसरी (8) का वाञ्छा रक्खा जाता है। गच्छ (10) को वाञ्छा (8) से गुणा करने पर 80 हुए। फिर वाञ्छा (8) को गुणनफल (80) में मिला देने से 88 हुए। 88 को फिर गच्छ (10) से गुणा किया जाय तो गुणनफल 880 हुए। इसके बाद वाञ्छा (5) को दुगुना(१६) करके 880 पर भाग देने से 55 निकल आए। यही एक से लेकर दस तक की संख्याओं का योगफल है। ऊपर लिखा तरीका ठाणांग सूत्र की टीका में दिया गया है। इससे सरल एक दूसरा तरीका भी हैजिस संख्या तक योग फल निकालना हो, उसे एक अधिक . .
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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