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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संपह २८९ Anivorrnnn है उसे संक्लेश कहते हैं। संक्लेश के दस कारण हैं (१) उपधि संक्लेश-वस्त्र, पात्र आदि संयमोपकरण उपधि कह. ___ लाते हैं। इनके विषय में संक्लेश होना उपधिसंक्लेश कहलाता है। (२) उपाश्रय संक्लेश- उपाश्रय नाम स्थान का है। स्थान के विषय में संक्लेश होना उपाश्रय संक्लेश कहलाता है। (३) कषायसंक्लेश- कषाय यानी क्रोध मान माया लोभ से चित्त में अशान्ति पैदा होना कषाय संक्लेश है। (५) भक्तपान संक्लेश- भक्त (आहार) पान आदि से होने वाला संक्लेश भक्त पान संक्लेश कहलाता है। (५-६-७) मन, वचन और काया से किसी प्रकार चित्त में अशान्ति का होना क्रमशः (५) मन संक्लेश (६) वचन संक्लेश और (७) काया संक्लेश कहलाता है। (--8-१०) ज्ञान, दर्शन और चारित्र में किसी तरह की अशुदता का पाना क्रमशः() ज्ञान संक्लेश(8)दर्शन संक्लेश और (१०) चारित्र संक्लेश कहलाता है। (ठाणांग, स्त्र ७३६) ७१५- असंक्लेश दस ___ संयम का पालन करते हुए मुनियों के चित्त में किसी प्रकार की अशान्ति (असमाधि) का न होना भसंक्लेश कहलाता है। इसके दस भेद हैं (१) उपधि असंक्लेश (२) उपाश्रय असंक्लेश (३) कषाय असंक्लेश (४) भक्त पान असंक्लेश (५) मन असंक्लेश (६) वचन असंक्लेश (७) काया असंक्लेश () ज्ञान असंक्लेश (8) दर्शन असंक्लेश (१०) चारित्र असंक्लेश (ठाणांग, सूत्र ७३६ ) ७१६-छद्मस्थदसबातों को नहीं देख सकता दस स्थानों को जीव सर्व भाव से जानता या देखता नहीं है। ।
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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