SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 413
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह (६) अभिग्रह पञ्चक्रवाण- उपवास के बाद या बिना उपवास के अपने मन में निश्चय कर लेना कि अमुक बातों के मिलने पर ही पारणा या आहारादि ग्रहण करूँगा, इस प्रकार की प्रतिज्ञा कोअभिग्रह कहते हैं। जैसे भगवान महावीर स्वामी ने पाँच मास के उपरान्त अभिग्रह किया था-कोई सती राजकुमारी उड़दों को लिए बैठी हो । उसका सिर मुंडा हुआ हो । पैरों में बेड़ी हो । एक पैर देहली के अन्दर तथा एक बाहर हो। आँखों में आँसू हों इत्यादि सब बातें मिलने पर राजकन्या के हाथ से उबाले हुए उड़दों का ही आहार लेना।जब तक सारी बातें न मिलें पारना न करना। __ अभिग्रह में जो बातें धारणी हों उन्हें मन में या वचन द्वारा निश्चय कर लेने के बाद नीचे लिखा पञ्चक्खाण किया जाता है । अभिग्रह करने का पाठ अभिग्गहं पञ्चक्खाइ अन्नस्थणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरइ । . अगर अप्रावरण अर्थात् वस्त्र रहित अभिग्रह किया हो तो 'चोलपट्टागारेणं' अधिक बोलना चाहिए। (१०) निविगइ पञ्चक्रवाण- विगयों के त्याग को निम्विगइ पच्चक्खाण कहते हैं। निव्विगइ करने का पाठ निम्विगइयं पञ्चक्खाइ अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेण लेवालेवणं गिहत्थसंसट्टेणं उक्खित्तविवेगेणं पडुच्चमक्खिएणं पारिट्ठावणियागारेणं महत्तरागारणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरह । . निबिगइ के नौ आगारों का स्वरूप इसी भाग के बोल नं. ६२६ में दे दिया गया है। - --
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy