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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साहुवयणेणं महत्तरागारेण सव्वसमाहिवत्तियागारेण वोसिरह। पुरिमट्ट पञ्चकखाण के आगारों की व्याख्या इसके दूसरे भाग के सातवें वोलसंग्रह के बोल नं ५१६ में दी गई है। नोट- अगर अवड्ढ पञ्चखाण करना हो तो पुरिमड्ढं की जगह अवढं बोलना चाहिए । पुरिमड्ढ़ को दो पोरिसी और प्रवड्ढ को तीन पोरिसी भी कहते हैं । (४) एकासन, वियासन का पञ्चश्वाण-पोरिसी या दोपोरिसी के बाद दिन में एक बार भोजन करने को एकासन कहते हैं। यदि दो बार भोजन किया जाय तोबियासण पञ्चक्रवाण हो जाता है। एकासण और बियासण में अचित्त भोजन और पक्के पानी का ही सेवन किया जाता है। __ एकासन करने का पाठ एगासणं पञ्चक्खाइ तिविहं पि आहारं असणं स्वाइम साइमं अन्नस्थणाभोगेणं सहसागारेणं सागारियागारेणं पाउंटणपसारणेणं गुरुअब्भुट्टाणेणं पारिद्वावणियागारेणं* महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरह । . एकासन के आगारों की व्याख्या बोल नं ५८७ में दी है। * इस में श्रावक को पारिहावणियागारेणं' नहीं बोलनाचाहिए। नोट- अगर बियासण करना हो 'एगासणं' की जगह 'बियासणं' बोलना चाहिए । (५.) एगहाण का पञ्चक्खाण- हाथ और मुँह के सिवाय शेष अों को बिना हिलाए दिन में एक ही बार भोजन करने को एगहाण पञ्चक्रवाण कहते हैं। इसकी सारी विधि एकासना के समान हैं। केवल हाथ पैर हिलाने का आगार नहीं रहता। इसी लिए इसमें 'बाउंटणपसारणेणं नहीं बोला जाता। भोजन प्रारम्भ करते समय जिम आसन से बैठे, ठेठ तक वैसे ही बैठे रहना चाहिए। . . .
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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