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________________ ३७. श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला कहना। रास्ते के स्थिर होने पर भी कहना, यह मार्ग अमुक नगर को जाता है। गाड़ी के पहुँचने पर भी कहना कि गांव आगया। (८) भावसत्य-निश्चय की अपेक्षा कई बातें होने पर भी किसी एक की अपेक्षा से उसमें वही बताना । जैसे तोते में कई रंग होने पर भी उसे हरा कहना। (६) योगसत्य- किसी चीज के सम्बन्ध से व्यक्ति विशेष को उस नाम से पुकारना । जैसे- लकड़ी ढोने वाले को लकड़ी के नाम से पुकारना। (१०) उपमासत्य-किसी बात के समान होने पर एक वस्तु की दूसरी से तुलना करना और उसे उस नाम से पुकारना । (ठाणांग, सूत्र ७४१) (पनवणा सूत्र भाषापद ११) . (धर्मसंग्रह अधिकार ३ गाथा ४१ की टीका) ६६६-सेत्यामृषा (मिश्र) भाषा के दस प्रकार __ जिस भाषा में कुछ अंश सत्य तथा कुछ असत्य हो उसे सत्यामृषा (मिश्र) भाषा कहते हैं । इसके दस भेद हैं(१) उत्पन्नमिश्रिता- संख्या पूरी करने के लिए नहीं उत्पन्न हुओं के साथ उत्पन्न हुओं को मिला देना । जैसे-किसी गाँव में कम या अधिक बालक उत्पन्न होने पर भी 'दस बालक उत्पन्न हुए' यह कहना। . (२) विगतमिश्रिता- इसी प्रकार मरण के विषय में कहना। (६) उत्पन्नविगतमिश्रिता- जन्म और मृत्यु दोनों के विषय में अयथार्थ कथन । (४)जीवमिश्रिता-जीवित तथा मरे हुए बहुत से शंख आदि के ढेर को देख कर यह कहना अहो ! यह कितना बड़ा जीवों का ढेर है। जीवितों को लेकर सत्य तथा मरे हुओं को लेने से असत्य होने के कारण यह भाषा सत्यामृषा है ।
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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