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________________ wwwvvvww.rra श्री सेठिया जैन प्रन्यमाला में भगवान् ऋषभदेव के लिए आया है 'सक्के देविंदे देवराया वंदति नमंसति' अर्थात् देवों का राजा देवेन्द्र शक्र वन्दना करता है, नमस्कार करता है। ऋषभदेव के भूत काल में होने पर भी यहाँ क्रिया में वर्तमान काल है। यद्यपि इस तरह काल में भेद होता है, फिर भी यह निर्देश तीनों कालों में इस बात की समानता बताने के लिए किया गया है अर्थात् देवेन्द्र भूत काल में तीर्थङ्करों को वन्दना करते थे, वर्तमान काल में करते हैं और भविष्यकाल में करेंगे । इन तीनों कालों को बताने के लिए काल का भेद होने पर भी सामान्य रूप से वर्तमान काल दे दिया गया है। (ठाणांग, सूत्र ७४४) ६६८-सत्यवचन के दस प्रकार जो वस्तु जैसी है, उसे वैसी ही बताना सत्यवचन है। एक जगह एक शब्द किसी अर्थ को बताता है और दूसरी जगह दूसरे अर्थ को। ऐसी हालत में अगर वक्ता की विवना ठीक है तो दोनों ही अर्थों में वह शब्द सत्य है । इस प्रकार विवक्षाओं के भेद से सत्य वचन दस प्रकार का है(१) जनपद सत्य- जिस देश में जिस वस्तु का जो नाम है, उस देश में वह नाम सत्य है । दूसरे किसी देश में उस शब्द का दूसरा अर्थ होने पर भी किसी भी विवक्षा में वह असत्य नहीं है। जैसे- कोंकण देश में पानी को पिच्छ कहते हैं। किसी देश में पिता को भाई, सासु को आई इत्यादि कहते हैं। भाई और भाई कासरा अर्थ होने पर भी उस देश में वह सत्य ही है। (२) सम्मतसत्य- प्राचीन आचार्यों अथवा विद्वानों ने जिस शब्द का जो अर्थ मान लिया है उस अर्थ में वह शब्द सम्मतसत्य है । जैसे पंकज का यौगिक अर्थ है कीचड़ से पैदा होने वाली वस्तु । कीचड़ से मेंढक, शैवाल, कमल आदि बहुत सी
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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