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________________ को जैन सिद्धान्त बोल संग्रह ३५९ जाने पर यानि पुरुष की मृत्यु हो जाने पर यदि उसकी हड्डियाँ न जलें तो बारह वर्षे तक सौहाथ के अन्दर अस्वाध्याय का कारण होती हैं। किन्तु अग्नि द्वारा दाह संस्कार कर दिये जाने पर या पानी में बह जाने पर हड्डियाँ अस्वाध्याय का कारण नहीं रहतीं। हड्डियों को जमीन में दफना देने पर (गाड़ देने पर) अस्वाध्याय माना गया है। (४) अशुचि सामन्त- अशुचि रूप मूत्र और पुरीष (विष्टा) यदि नजदीक में पड़े हुए हों तो अस्वाध्याय होता है। इसके लिए ऐसा माना गया है कि जहाँ रुधिर, मूत्र और विष्टा आदि अशुचि पदार्थ दृष्टि गोचर होते हों तथा उनकी दुर्गन्धि आती हो वहां तक अस्वाध्याय माना गया है। (५) श्मशान सामन्त- श्मशान के नजदीक यानि जहां मनुष्य आदि का मृतक शरीर पड़ा हुआ हो । उसके आसपास कुछ दूरी तक (१०० हाथ तक) अस्वाध्याय रहता है। ( ६ ) चन्द्रग्रहण और (७) सूर्य ग्रहण के समय भी अस्वा ध्याय माना गया है । इसके लिए समय का परिमाण इस प्रकार माना गया है । चन्द्र या सूर्य का ग्रहण होने पर यदि चन्द्र और सूर्य का सम्पूर्ण ग्रहण (ग्रास ) हो जाय तो ग्रसित होने के समय से लेकर चन्द्रग्रहण में उस रात्रि और दूसरा एक दिन रात छोड़ कर तथा सूर्य ग्रहण में वह दिन और दूसरा एक दिन रात छोड़ कर खाध्याय करना चाहिये किन्तु यदि उसी रात्रि अथवा दिन में ग्रहण से छुटकारा हो जाय तो चन्द्र ग्रहण में उस रात्रि का शेष भाग और सूर्यग्रहण में उस दिन का शेष भाग और उस रात्रि तक अस्वाध्याय रहता है। चन्द्र और सूर्यग्रहण का अस्वाध्याय आन्तरिक्ष यानि आकाश सम्बन्धी होने पर भी यहाँ पर इसकी विवक्षा नहीं की गई है किन्तु
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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