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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संपह PAS SAAMERW. DDHA..- 4N (३)महाकाली रानी-कोणिक राजा की छोटी माता और श्रेणिक राजा की तीसरी रानी का नाम महाकाली था। इसका सारा वर्णन काली रानी की तरह ही है। तप में विशेषता है। इसने लघु सिंह क्रीड़ा तप अङ्गीकार किया। जिस तरह से क्रीड़ा करता हुआ सिंह अतिक्रान्त स्थान को देखता हुआ आगे बढ़ता है अर्थात् दो कदम आगे रख कर एक कदम वापिस पीछे रखता है । इस क्रम से वह आगे बढ़ता जाता है। इसी प्रकार जिस तप में पूर्व पूर्व आचरित तप का फिर से सेवन करते हुए आगे बढ़ा जाय वह लघुसिंह क्रीड़ा तप कहलाता है। आगे बताये जाने वाले महासिंह तप की अपेक्षा छोटा होने से यह लघुसिंह क्रीड़ा तप कहलाता है। इसमें एक से लगा कर नौ उपवास तक किये जाते हैं। इन के बीच में पूर्व आचरित तप कापुनः सेवन करके आगे बढ़ा जाता है और इस तरह वापिस श्रेणी उतारी जाती है। इसका नकशा ३४० वें पृष्ठ में दिया गया है। इस प्रकार अनेक विध तपकापाचरण करते हुए एक मास की संलेखना द्वारा केवल ज्ञान और केवल दर्शन उपार्जन कर महाकाली आर्या ने अन्तिम समय में मोक्ष पद प्राप्त किया। (४) कृष्णारानी-कोणिक राजा की छोटी माता और श्रेणिक राजा की चौथी रानी का नाम कृष्णा था। इसका सारा वर्णन काली रानी की तरह ही है। सिर्फ इतनी विशेषता है कि कृष्णा आर्या ने महासिंहनिष्क्रीड़ित तप किया। यह सप लघुसिंह निष्क्रीड़ित तप के समान ही है सिर्फ इतनी विशेषता है कि लघुसिंह निष्क्रीड़ित में तो नौ उपवास तक करके पीछे लौटा जाता है और इस में १६ उपवास तक करके पीछे लौटना चाहिये। शेष विधि और साधनाक्रम लघुसिंहनिष्क्रीड़ित तप के समान है। इसकी एक परिपाटी में एक वर्ष छः महीने और १८ दिन
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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