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________________ ३३८ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला वीर्य, पुरुषाकार, पराक्रम हैं तब तक मुझे अपना कार्य सिद्ध कर लेना चाहिए, अर्थात् प्रातः काल होते ही आर्या चन्दनवाला की आज्ञापास कर संलेखनापूर्वक आहार पानीका त्याग करकाल (मृत्यु) की वाँच्छा न करती हुई विचरूँ, ऐसा विचार कर प्रातः काल होते ही आर्या चन्दनवाला के पास आकर अपना विचार प्रकट किया। तब सती चन्दनबाला ने कहा कि जिस तरह आपको मुख हो वैसा ही कार्य करो। • इस प्रकार सती चन्दनबाला की आज्ञा प्राप्त कर काली आर्या ने संलेखना अङ्गीकार की। आठ वर्ष साध्वी पर्याय का पालन कर और एक महीने की संलेखना करके केवलज्ञान, केवलदर्शन उपार्जन कर अन्तिम समय में सिद्ध पद को प्राप्त किया। (२) मुकाली रानी- कोणिक राजा की छोटी माता और श्रेणिक राजा की दूसरी रानी का नाम सुकाली था। इसका सम्पूर्ण वर्णन काली रानी की तरह ही है। केवल इतनी विशेषता है कि सुकाली आर्या ने आर्या चन्दनबाला के पास से कनकावली तप करने की आज्ञा प्राप्त कर कनकावली तप अंगीकार किया। कनकावली भी गले के हार को कहते हैं। ... कनकावली तप रत्नावली तप के समान ही है किन्तु जिस प्रकार रत्नावली हार से कनकावली हार भारी होता है उसी मकार कनकावलीतपरत्नावलीतपसे कुछ विशिष्ट होता है। इसकी विधि और स्थापना का क्रम वही है जो रत्नावली तप का है सिर्फ थोड़ी विशेषता यह है कि रत्नावली तप में दोनों फूलों की जगह आठ आठ बेले और मध्य में पान के आकार ३४ बेले किये जाते हैं। कनकावली में आठ आठ वेलों की जगह आठ पाठ तेले और मध्य में ३४ बेलों की जगह ३४ तेले किये जाते हैं। ___ कनकावली तप की एक परिपाटी में एक वर्ष पांच महीने और
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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