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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह ३१३ कहा । यह सुन कर भद्रा कहने लगी कि हे पुत्र! कोई भी पुरुष तुम्हारे किसी भी पुत्र को घर से नहीं लाया और न तेरे सामने मारा ही है। किसी पुरुष ने तुझे यह उपसर्ग दिया है। तेरी देखी हुई घटना मिथ्या है। क्रोध के कारण उस हिंसक और पाप.बुद्धि वाले पुरुष को पकड़ लेने की प्रवृत्ति तेरी हुई है इसलिए भाव से स्थूल प्राणातिपात विरमण व्रत का भङ्ग हुआ है। पौषध व्रत में स्थित श्रावक कोसापराधी और निरपराधीदोनों तरह के प्राणियों की हिंसा का त्याग होता है। अयतना पूर्वक दौड़ने से पौषध का और क्रोध के आने से कषाय त्याग रूप उत्तर गुण (नियम),का भी भङ्ग हुआ है। इसलिए हे पुत्र ! अब तुम दण्ड प्रायश्चित लेकर अपनी आत्मा को शुद्ध करो। चुलनीपिता श्रावक ने अपनी माता की बात को विनय पूर्वक स्वीकार किया और बालोचना कर दण्ड प्रायश्चित्त लिया। .. चुलनीपिता श्रावक ने आनन्द श्रावक की तरह श्रावक की ग्यारह पडिमाएं अङ्गीकार की और सूत्र के अनुसार उनका यथावत् पालन किया। अन्त में कामदेव श्रावक की तरह समाधि मरण को प्राप्त कर सौधर्म देवलोक में सौधर्मावतंसक विमान के ईशान कोण में अरुणाभ विमान में देव रूप से उत्पन हुआ। वहाँ चार पल्योपम की आयुष्य. पूरी करके महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा और उसी भव में मोज जायगा। (४) मुरादेव श्रावक-- बनारस नाम की नगरी में जितशत्रु राजा राज्य करता था। उस नगरी में सुसदेव नामक एक गाथापति रहता था। उसके पास अठारह करोड़ सोनयों की सम्पत्ति थी और छः गायों के गोकुल थे। उसके धन्यानाम की धर्मपत्री थी। एक समय वहाँ पर भगवान महावीर स्वामी पधारे। मुरादेव ने भगवान् के पास श्रावक के बारह व्रत अङ्गीकार किए।
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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