SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 342
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१. श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला अपने स्थान को चला गया। उपसर्ग रहित होकर कामदेव श्रावक ने पडिमा (कायोत्सर्ग) को पारा अर्थात् खोला। ग्रामानुग्राम विचरते हुए भगवान् महावीर स्वामी वहाँ पधारे। कामदेव श्रावक को जब इस बात की सूचना मिली तो उसने । विचार किया कि जब भगवान् यहाँ पर पधारे हैं तो मेरे लिए यह श्रेष्ठ है कि भगवान् को वन्दना नमस्कार करके वहाँ से वापिस लौटने के बाद मैं पौषध पारूँ और आहार, पानी ग्रहण करूँ। ऐसा विचार कर सभा के योग्य वस्त्र पहन कर कामदेव श्रावक भगवान् के पास पहुँचा और शंख श्रावक की तरह भगवान् की पर्यपासना करने लगा। धर्म कथा समाप्त होने पर भगवान् ने रात्रि के अन्दर पौषधशाला में बैठे हुए कामदेव को देव द्वारा दिये गये पिशाच, हाथी और सर्प के तीन उपसर्गों का वर्णन किया और श्रमणानग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को सम्बोधित करके फरमाने लगे कि हे आर्यो! जब घर में रहने वाले गृहस्थ श्रावक भी देव, मनुष्य और तिर्यश्च सम्बन्धी उपसों को समभाव पूर्वक सहन करते है और धर्मध्यान में दृढ रहते हैं तो द्वादशाङ्ग गणिपिटक केधारक श्रमण निर्ग्रन्थों को तो ऐसे उपसर्ग सहन करने के लिए सदा तत्पर रहना ही चाहिए। भगवान् की इस बात को सब श्रमण निर्ग्रन्थों ने विनय पूर्वक स्वीकार किया। कामदेव श्रावक ने भी भगवान् से बहुत से प्रश्न पूछे और उनका अर्थ ग्रहण किया। अर्थ ग्रहण कर हर्षित होता हुआ कामदेव श्रावक अपने घर आया। उधर भगवान् भी चम्पा नगरी से विहार कर ग्रामानुग्राम विचरने लगे। ___ कामदेव श्रावक ने ग्यारह पडिमाओं का भली प्रकार पालन किया।बीस वर्ष तकश्रावक पर्याय का पालन करसंलेखनासंथारा * शख श्रावक का वर्णन इसी भाग के बोल नं. ६२४ में है।
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy