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________________ २०६ श्री सेठिया जैन प्रन्यमाला नहीं है। यदि कृपा कर आप कुछ नजदीक पधारें तो मैं मस्तक से आपके चरण स्पशे करूँ। गौतम स्वामी के नजदीक पधारने पर आनन्द ने उनके चरण स्पर्श किये और निवेदन किया कि मुझे अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ है जिससे मैं लवण समुद्र में पाँच सौ योजन यावत् नीचे लोलुयच्युत नरकावास को जानता और "देखता हूँ। यह सुन कर गौतम स्वामी ने कहा कि श्रावक को इतने . । विस्तार वाला अवधिज्ञान नहीं हो सकता। इसलिये हे भानन्द! तुम इस बात के लिए दण्ड प्रायश्चित्त लो। तब आनन्द श्रावक ' ने कहा कि हे भगवन् ! क्या सत्य बात के लिए भी दण्ड प्रायश्चित्त लिया जाता है ? गौतम स्वामी ने कहा- नहीं। अानन्द श्रावक · ने कहा हे भगवन् ! तब तो आप स्वयं दण्ड प्रायश्चित्त लीजियेगा। आनन्द श्रावक के इस कथन को सुन कर गौतम स्वामी के 'हृदय में शंका उत्पन्न हो गई । अतः भगवान् के पास आकर सारा वृत्तान्त कहा। तब भगवान् ने कहा कि हे गौतम ! आनन्द श्रावक का कथन सत्य है इसलिए वापिस जाकर आनन्द श्रावक से क्षमा मांगो और इस बात का दण्ड प्रायश्चित्त लो। भगवान् के कथनानुसार गौतम स्वामी ने आनन्द श्रावक के पास जाकर क्षमा मांगी और दण्ड प्रायश्चित्त लिया। आनन्द श्रावक ने बीस वर्ष तक श्रमणोपासक पर्याय का : पालन किया अर्थात् श्रावक के व्रतों का भली प्रकार पालन किया । साठ भक्त अनशन पूर्वक अर्थात् एक महीने का संले खनासंथारा करके समाधि मरण से मर कर सौधर्म देवलोक के : अरुण विमान में देव रूप से उत्पन्न हुआ। वहाँ चार पल्योपम ' की स्थिति पूर्ण करके महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा और उसी भव में मोक्ष प्राप्त करेगा। - (२) कामदेव श्रावक- चम्पा नगरी में जितशत्रु राजा राज्य
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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