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________________ ३०४ श्री सेठिया जैन अन्धमाला, अपने घर आगया। घर आकर अपनी धर्मपत्री शिवानन्दा से कहने लगा कि हे देवानुपिये ! मैंने आज श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास श्रावक के बारह व्रत अङ्गीकार किये हैं। तुम भी जाश्रो और भगवान् को वन्दना नमस्कार कर श्राविका के बारह व्रत अङ्गीकार करो। शिवानन्दा ने अपने स्वामी के कथनानुसार भगवान् के पास जाकर बारह व्रत अङ्गीकार किये और श्रमणोपासिका बनी। - श्री गौतम स्वामी के पूछने पर भगवान् ने फरमाया कि आनन्द श्रावक मेरे पास दीक्षा नहीं लेगा किन्तु बहुत वर्षों तक श्रावक धर्मका पालन कर सौधर्म देवलोक के अरुण विमान में चार पल्योपम की स्थिति वाले देव रूप से उत्पन्न होगा। __ आनन्द श्रावक अपनी पत्री शिवानन्दा भार्या सहित श्रमण निर्ग्रन्थों की सेवा भक्ति करता हुआ प्रानन्द पूर्वक जीवन व्यतीत करने लगा। एक समय आनन्द श्रावक ने विचार किया कि मैं भगवान् के पास दीक्षा लेने में तो असमर्थ हूँ किन्तु अब मेरे लिए यह उचित है कि ज्येष्ठ पुत्र को घर का भार सम्भला कर एकान्त रूप से धर्मध्यान में समय बिताऊँ। तदनुसार प्रातः काल अपने परिवार के सब पुरुषों के सामने ज्येष्ठ पुत्र को घर का भार सम्भला कर आनन्द श्रावक ने पौषध शाला में आकर दर्भ संस्तारक बिछाया और उस पर बैठ कर धर्माराधन करने लगा। इसके पश्चात् आनन्द श्रावक ने श्रावक कीग्यारह पडिमा * धारण की और उनका सूत्रानुसार सम्यक् प्रकार से अाराधन किया। - इस प्रकार उग्र तप करने से आनन्द श्रावक का शरीर बहुत कृश (दुबला) होगया । तब आनन्द श्रावक ने विचार किया ४ श्रावक की ग्यारह पडिमामों का स्वरूप ग्यारहवें पोल संग्रह में दिया जायगा।
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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