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________________ २९८ श्री सेठिया जैन मन्यमाला औषधियाँ डाल कर बनाया हुआ) और सहस्रपाक (हजार औषधियाँ डाल कर बनाया हुआ) तेल रखा था। (५) उव्वट्टणविहि- शरीर पर लगाए हुए तेल को सुखाने के लिए पीठी आदि की मर्यादा करना। आनन्द श्रावक ने कमलों के पराग आदि से सुगन्धित पदार्थ का परिमाण किया था। (६) मज्जणविहि-स्नानों की संख्या तथा स्नान करने के लिए जल का परिमाण करना । आनन्द श्रावक ने स्नान के लिए आठ घड़े जल का परिमाण किया था। (७) वत्थविहि- पहनने योग्य वस्त्रों की मर्यादा करना। आनन्द श्रावक ने कपास से बने हुए दो वस्त्रों का नियम किया था। (८) विलेवणविहि- स्नान करने के पश्चात् शरीर में लेपन करने योग्य चन्दन, केशर आदि सुगन्धित द्रव्यों का परिमाण निश्चित करना । आनन्द श्रावक ने अगुरु (एक प्रकार का सुगन्धित .द्रव्य विशेष), कुंकुम, चन्दन आदि द्रव्यों की मर्यादा की थी। (८) पुप्फविहि-फूलमाला आदि का परिमाण करना। आनन्द श्रावक ने शुद्ध कमल और मालती के फूलों की माला पहनने की मर्यादा की थी। .(१०) आभरणविहि- गहने, जेवर आदि का परिमाण करना। आनन्द श्रावक ने कानों के श्वेत कुण्डल और स्वनामाडिन्त (जिस पर अपना नाम खुदा हुआ हो ऐसी) मुद्रिका (अंगूठी) धारण करने का परिमाण किया था। (११) धृवविहि- धूप देने योग्य पदार्थों का परिमाण करना। आनन्द श्रावक ने अगर और लोबान आदि का परिमाण किया था। (१२) भोयणविहि- भोजन का परिमाण करना। (१३) पेज्जविहि- पीने योग्य पदार्थों की मर्यादा करना। मानन्द श्रावक ने मूंग की दाल और घी में भुने हुए चावलों
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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