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________________ २९६ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला इस प्रकार विचार करने लगा कि अहो!आज मेरा सद्भाग्य है। भगवान् का नाम ही पवित्र एवं कल्याणकारी है तो उनके दर्शन का तो कहना ही क्या? ऐसा विचारकर उसने शीघ्र ही स्नान, किया, सभा में जाने योग्य शुद्ध वस्त्र पहने, अल्प भार और बहुमूल्य वाले आभूषण पहने । वाणियाग्राम नगर के बीच में से होता हुआ आनन्द सेठ धुतिपलाश उद्यान में, जहाँ भगवान् विराजमान थे, आया । तिक्खुत्तो के प ठ से वन्दना नमस्कार कर बैठ गया। भगवान् ने धर्मोपदेश फरमाया। धर्मोपदेश सुन कर जनता वापिस चली गई किन्तु अानन्द वहीं पर बैठा रहा। हाथ जोड़ कर विनय पूर्वक भगवान् से अर्ज करने लगा कि हे भगवन् ! ये निर्ग्रन्थ प्रवचन मुझे विशेष रुचिकर हुए हैं। आपके पास जिस तरह बहुत से राजा, महाराजा, सेठ, सेनापति, तलवर,कौटुम्बिक,माडम्बिक, सार्थवाह आदि प्रव्रज्या अङ्गीकार करते हैं उस तरह प्रव्रज्या ग्रहण करने में तो मैं असमर्थ हूँ। मैं आपके पास श्रावक के बारह व्रत अङ्गीकार करना चाहता हूँ। भगवान् ने फरमाया कि जिस तरह तुम्हें सुख हो वैसा कार्य करो किन्तु धर्म कार्य में विलम्ब मत करो। __ इसके बाद आनन्द गाथापति ने श्रमण भगवान् महावीर के पास निम्न प्रकार से व्रत अङ्गीकार किए। दो करण तीन योग से स्थूल प्राणातिपात, स्थूल मृषावाद, स्थूल अदत्तादान का त्याग किया। चौथे व्रत में स्वदार संतोष व्रत की मर्यादा की और एक शिवानन्दा भार्या के सिवाय बाकी दूसरी सब स्त्रियों के साथ मैथुन का त्याग किया। पाँचवें व्रत में धन, धान्यादि की मर्यादा की। बारह करोड़ सौनेया,गायों के चार गोकुल, पाँच सौ हल और पाँच सौ हलों से जोती जाने वाली भूमि, हजार गाई और चार बड़े जहाज के उपरान्त
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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