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________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला " ऐसा करने में वह व्यक्ति समर्थ भी हो जाय किन्तु व्यर्थ खोया हुआ मनुष्य जन्म फिरः मिलना अति दुर्लभ है। - इस प्रकार देव दुर्लभ मनुष्य भव को प्राप्त करके भी जो व्यक्ति प्रमाद, आलस्य,मोह, क्रोध, मान आदि के वशीभूत होकर संसार " सागर से पार उतारने वाले धर्म का श्रवण एवं आचरण नहीं करता वह प्राप्त हुए मनुष्य भव रूपी अमूल्य रत्न को व्यर्थ खो देता है । चौरासी लक्ष जीव योनि में भटकते हुए प्राणीकोबार बार मनुष्य भव कीमाप्ति उपरोक्त दस दृष्टान्तों की तरह अत्यन्त दुलेभ है । अतः मनुष्य भव को प्राप्त कर मुमुक्षु आत्माओं को निरन्तर धर्म में उद्यम करना चाहिए। . ___ (उत्तराध्ययन नियुक्ति अध्ययन ३ ) ( आवश्यक नियुक्ति गाथा ८३२) ६८१- अच्छेरे (आश्चर्य) दस ..... जो बात अभूतपूर्व (पहले कभी नहीं हुई) हो और लोक में जो विस्मय एवं आश्चर्य की दृष्टि से देखी जाती हो ऐसी बात को अच्छेरा (आश्चर्य्य) कहते हैं। इस अवसर्पिणी काल में दस बातें आश्चर्य जनक हुई हैं। वे इस प्रकार हैं- . (१) उपसर्ग (२) गर्भहरण (३) स्त्रीतीर्थङ्कर (४) अभव्या परिषद् (५) कृष्ण का अपरकंका गमन(६) चन्द्र सूर्य अवतरण (७) हरिवंश कुलोत्पत्ति (८) चपरोत्पात (8) अष्टशतसिद्धा (१०) असंयत पूजा। ये दस प्रकार के आश्चर्य किस प्रकार हुए ? इनका किश्चित् विवरण यहाँ दिया जाता है(१)उपसर्ग-तीर्थङ्कर भगवान् का यह अतिशय होता है कि वे जहाँ विराजते हों उसके चारों तरफ सौ योजन के अन्दर किसी प्रकार का वैरभाव, मरी आदि रोग एवं दुर्भिक्ष आदि किसी प्रकार का उपद्रव नहीं होता, किन्तु श्रमण भगवान् महावीर
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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