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________________ २६६ श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला वह शौंडीर पुत्र कहलाता है। जैसे-- कुवलयमाला कथा के अन्दर महेन्द्रसिंह नाम के राजपुत्र की कथा आती है। ___ उपरोक्त जो पुत्र के सात भेद बताए गए हैं वे किसी अपेक्षा से अर्थात् उस उस प्रकार के गुणों की अपेक्षा से ये सातों. भेद 'आत्मज' के ही बन जाते हैं। जैसे कि माता की अपेक्षा : से क्षेत्रज कहलाता है। वास्तव में तो वह आत्मज ही है। दत्तक पुत्र तो आत्मज ही है किन्तु वह अपने परिवार में दूसरे व्यक्ति के गोद दे दिया गया है, इस लिए दत्तक कहलाता है। इसी तरह विनयित, औरस, मौखर और शौंडीर भी उस उस प्रकार के गुणों की अपेक्षा से आत्मज पुत्र के ही भेद हैं। यथाविनयित अर्थात् पण्डित अभयकुमार के समान। औरस- उरस बल को कहते हैं। बलशाली पुत्र औरस कहलाता है, यथा बाहुबली। मुखर अर्थात् वाचाल पुत्र को मौखर कहते हैं। शौण्डीर अर्थात् शूरवीर या गर्वित (अभिमानी) जो हो उसे शौण्डीर पुत्र कहते हैं, यथा- वासुदेव । इस प्रकार भिन्न भिन्न गुणों की अपेक्षा से आत्मज पुत्र के ही ये सात भेद हो जाते हैं। () संवर्द्धित- भोजन आदि देकर जिसे पाला पोसा हो उसे संवदित पुत्र कहते हैं। जैसे अनाथ बच्चे आदि । (8) उपयाचित-- देवता आदि की आराधना करने से जो पुत्र उत्पन्न हो उसे उपयाचित पुत्र कहते हैं, अथवा अवपात सेवा को कहते हैं । सेवा करना ही जिसके जीवन का उद्देश्य है उसे अवपातिक पुत्र या सेवक पुत्र कहते हैं। (१०) अन्तेवासी- जो अपने समीप रहे उसे अन्तेवासी कहते हैं। धर्म उपार्जन के लिए या धर्मसंयुक्त अपने संयमी जीवन का निर्वाह करने के लिए जो धर्मगुरु के समीप रहे उसे धर्मा
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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