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________________ सेठिया जैन प्रन्थमाला प्राप्त हों ऐसा विचार करना कामाशंसा प्रयोग है। (७) भोगाशंसा प्रयोग - मनोइ गन्ध, मनोज्ञ रस और मनोश स्पर्श की मुझे प्राप्ति हो ऐसी इच्छा करना भोगाशंसा प्रयोग है । शब्द और रूप काम कहलाते हैं । गन्ध, रस और स्पर्श ये भोग कहलाते हैं । २५४ (८) लाभाशंसा प्रयोग- अपने तपश्चरण आदि के फल स्वरूप यह इच्छा करना कि मुझे यश, कीर्ति और श्रुत आदि का लाभ हो, लाभाशंसा प्रयोग कहलाता है । (2) पूजाशंसा प्रयोग - इहलोक में मेरी खूब पूजा और प्रतिष्ठा हो ऐसी इच्छा करना पूजाशंसा प्रयोग है । (१०) सत्काराशंसा प्रयोग - इहलोक में वस्त्र, आभूषण यदि से मेरा आदर सत्कार हो ऐसी इच्छा करना सत्काराशंसा प्रयोग है। (ठाणांग, सूत्र ७५६ ) ६६८ - उपघात दस संयम के लिए साधु द्वारा ग्रहण की जाने वाली अशन, पान, वस्त्र, पात्र आदि वस्तुओं में किसी प्रकार का दोष होना उपघात कहलाता है । इसके दस भेद हैं 1 ( १ ) उद्गमोपघात - उद्गम के प्रधाकर्मादि सोलह दोषों से अशन (आहार), पान तथा स्थान आदि की अशुद्धता उद्गमोपघात कहलाती है । आाधाकर्मादि सोलह दोष सोलहवें बोल संग्रह में लिखे जायेंगे । (२) उत्पादनोपघात- उत्पादना के धात्री आदि सोलह दोषों से आहार पानी आदि की अशुद्धता उत्पादनोपघात कहलाती है । धात्र्यादि दोष सोलहवें बोल संग्रह में लिखे जायेंगे | (३) एषणोपघात - एषणा के शङ्कितादि दस दोषों से आहार पानी आदि की अशुद्धता (अकल्पनीयता) एषणोपघात कहलाती :
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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