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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह २३१ क्षयोपशम या उपशम से आत्मा में ज्ञान आदि गुणों का प्रकट होना लब्धि है। इसके दस भेद हैं(१) ज्ञानलब्धि- ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयादि से आत्मा में मतिज्ञानादि का प्रकट होना। (२) दर्शन लब्धि- सम्यक, मिथ्या या मिश्र श्रद्धान रूप आत्मा का परिणाम दर्शन लब्धि है। ( ३ ) चारित्र लब्धि-- चारित्रमोहनीय कर्म के क्षय, क्षयोपशम या उपशम से होने वाला आत्मा का परिणाम चारित्र लब्धि है। (४) चारित्राचारित्र लब्धि- अप्रत्याख्यानावरणीय कर्म के क्षयादि से होने वाले आत्मा के देशविरति रूप परिणाम को चारित्राचारित्र लब्धि कहते हैं। (५) दान लब्धि-दानान्तराय के क्षयादि से होने वाली लब्धि को दान लब्धि कहते हैं। (६)लाभ लब्धि-लाभान्तराय के क्षयोपशम से होने वाली लब्धि। (७) भोग लब्धि- भोगान्तराय के क्षयोपशम से होने वाली लब्धि भोग लब्धि है। (८) उपभोग लब्धि-- उपभोगान्तराय के क्षयोपशम से होने वाली लब्धि उपभोग लब्धि है। (8) वीर्य लब्धि-- वीर्यान्तराय के क्षयोपशम से होने वाली लब्धि वीर्य लब्धि है। (१०) इन्द्रिय लब्धि- मतिज्ञानावरणीय के क्षयोपशम से प्राप्त हुई भावेन्द्रियों का तथा जाति नामकर्म और पर्याप्त नामकर्म के उदय से द्रव्येन्द्रियों का होना। (भगवती शतक ८ उद्देशा २ ) ६५६- मुण्ड दस जो मुण्डन अर्थात् अपनयन (हटाना) करे, किसी वस्तु को छोड़े उसे मुण्ड कहते हैं। इसके दस भेद हैं
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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