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________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह ( ६ ) अधोगौरव परिणाम - जिससे नीचे जाने की शक्ति प्राप्त हो । (७.) तिर्यग्गौरव परिणाम - जिससे तिळें जाने की शक्ति प्राप्त हो । (८) दीर्घगौरव परिणाम -- जिससे जीव को बहुत दूर तक जाने की शक्ति प्राप्त हो। इस परिणाम के उत्कृष्ट होने से जीव लोक के एक कोने से दूसरे कोने तक जा सकता है । (६) खगौरव परिणाम - जिससे थोड़ी दूर चलने की शक्ति हो । २०५ (ठागांग, सूत्र ६८६ ) + ६३७ - रोग उत्पन्न होने के नौ शरीर में किसी तरह के विकार होने को रोग कहते हैं । रोगोत्पत्ति के नौ कारण हैं ( १ ) अश्वासन - अधिक बैठे रहने से । इससे अर्श (मसा) आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं। अथवा ज्यादा खाने से अजीर्ण ' आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं । ( २ ) अहितासण- अहित अर्थात् जो आसन अनुकूल न हो उस आसन से बैठने पर । कई आसनों से बैठने पर शरीर अस्वस्थ हो जाता है । अथवा अजीर्ण होने पर भोजन करने से । ( ३ ) अतिनिद्दा अधिक नींद लेने से । स्थान (४) अतिजागरित - बहुत जागने से । (५) उच्चारनिरोह - बड़ीनीति की बाधा रोकने से । (६) पासवणनिरोह - लघुनीति (पेशाब) रोकने से । (७) श्रद्धाणगमण - मार्ग में अधिक चलने से । (८) भोयण पडिकूलता- जो भोजन अपनी प्रकृति के अनुकूल न हो ऐसा भोजन करने से । ( 8 ) इंदियत्थविकोवण - इन्द्रियों के शब्दादि विषयों का विपाक अर्थात् काम विकार | स्त्री आदि में अत्यधिक सेवन तथा आसक्ति रखने से उन्माद वगैरह रोग उत्पन्न हो जाते हैं। विषयभोगों :
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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