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________________ २०० मी सेठिया जैन प्रन्थमाला यथाख्यात चारित्र, क्षायिक सम्यक्त्व, अनाहारक, केवल ज्ञान और केवल दर्शन इन मार्गणाओं से युक्त जीव मोक्ष जा सकते हैं। इनके अतिरिक्त चार मार्गणाओं (कषाय,वेद, योग, लेश्या) से युक्त जीव मोक्ष नहीं जा सकता। द्रव्य द्वार- सिद्ध जीव अनन्त हैं। क्षेत्र द्वार-- लोकाकाश के असंख्यातवें भाग में सब सिद्ध अवस्थित हैं। स्पर्शन द्वार-- लोक के अग्रभाग में सिद्ध रहे हुए हैं। काल द्वार--एक सिद्ध की अपेक्षा से सिद्ध जीव सादि अनन्त हैं और सब सिद्धों की अपेक्षा से सिद्ध जीव अनादि अनन्त हैं। अन्तर द्वार--सिद्ध जीवों में अन्तर नहीं है अर्थात् सिद्ध अवस्था को प्राप्त करने के बाद फिर वे संसार में आकर जन्म नहीं लेते, इसलिए उनमें अन्तर (व्यवधान) नहीं पड़ता , अथवा सब सिद्ध केवल ज्ञान और केवल दर्शन की अपेक्षा एक समान हैं। भाग द्वार- सिद्ध जीव संसारी जीवों के अनन्तवें भाग हैं अर्थात् पृथ्वी, पानी,वनस्पति आदि के जीव सिद्ध जीवों से अनन्तगुणे अधिक हैं। भाव द्वार-औपशमिक, दायिक, चायोपशमिक, औदयिक और पारिणामिक, इन पाँच भावों में से सिद्ध जीवों में दो भाव पाये जाते हैं अर्थात् केवल ज्ञान केवल दर्शन रूप क्षायिक भाव और जीवत्व रूप पारिणामिक भाव होते हैं। ___ अल्प बहुत्व द्वार- सबसे थोड़े नपुंसक सिद्ध, स्त्रीसिद्ध उनसे संख्यातगुणे अधिक और पुरुष सिद्ध उनसे संख्यातगुणे हैं। इसका कारण यह है कि नपुंसक एक समय में उत्कृष्ट दस मोक्ष जा सकते हैं । स्त्री एक समय में उत्कृष्ट बीस और पुरुष एक समय में उत्कृष्ट १०८ मोक्ष जा सकते हैं।
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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