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________________ भी मेठिया जैन अन्धमाला प्रमाद, कषाय, अशुभ योग) तीन योग (मन, वचन और काया की अशुभ प्रवृत्ति)। भंड, उपकरणादि उपधि, अयतना से लेना और रखना, सूचीकुशाग्रमात्र प्रयतना से लेना और रखना। : आश्रय के दूसरी अपेक्षा मे ४२ भेद होते हैं- ५ इन्द्रिय, ४ कषाय, ५ अवत, ३ योग और २५ क्रियाएं (काईया, अहिगरणिया आदि क्रियाएं)। पाँच पाँच करके इनका स्वरूप प्रथम भाग बोल नं० २६२ से २६६ तक में दे दिया गया है। संबर तत्त्व संबर के सामान्यतः२० भेद हैं- ५ व्रतों का पालन करना (माणातिपात, मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन और परिग्रह से निवृत्ति रूप व्रतों का पालन करना) श्रोत्रेन्द्रियादि पाँच इन्द्रियों को वश में करना, ५ आश्रव का सेवन न करना (समकित, व्रत प्रत्याख्यान, कषाय का त्याग, शुभ योग की प्रवृत्ति, प्रमाद का त्याग) तीन योग अर्थात् मन, वचन और काया को वश में करना। भंड,उपकरण और सूचीकुशाग्रमात्र को यतनासे लेनाऔर रखना। संवर के दूसरी अपेक्षा से ५७ भेद हैं- ५ समिति (ईर्या समिति, भाषा समिति आदि) तीन गुप्ति (मनगुप्ति, वचनगुप्ति, कायगुप्ति)। २२ परिषह (क्षुधा, तृषा आदि परिषह) १० यतिधर्म (क्षमा, मार्दव आर्जव आदि)। १२ भावना (अनित्य भावना, अशरण भावना आदि) ५ चारित्र (सामायिक, छेदोपस्थापनीय पादि) ये सब ५७ भेद हुए। । निर्जरा तत्व _ निर्जरा के सामान्यतः बारह भेद हैं. अनशन, ऊनोदरी, भिक्षाचर्या, रस परित्याग, काय क्लेश, प्रतिसंलीनता ये छः बाह्य तप के भेद हैं। प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग ये छः आभ्यन्तर तप के भेद हैं।
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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