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________________ श्री जैन सिद्धान्त पोल संग्रह १४१ अजीव के ५६. भेदअजीव के दो भेद-रूपी और अरूपी । अरूपी अजीव के ३० भेद। धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय। प्रत्येक के स्कन्ध, देश, प्रदेश के भेद से ह और काल द्रव्य, येदस भेद। धर्मास्तिकाय,अधर्मास्तिकाय,आकाशास्तिकाय और काल द्रव्य का स्वरूप द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव और गुण केद्वारा जाना जाता है। इसलिए प्रत्येक के ५- ५ भेद होते हैं। इस प्रकार मरूपी अजीव के ३० भेद हुए। रूपी अजीव के ५३. भेद परिमण्डल,वर्त, व्यस्र, चतुरस्त्र, आयत इन पाँच संस्थानों के ५ वर्ण, २ गन्ध, ५ रस और आठ स्पर्श की अपेक्षा प्रत्येक के २०-२० भेद हो जाते हैं । अतः संस्थान के १०० भेद हुए। काला, नीला, लाल, पीला, और सफेद इन पांच वर्षों के भी उपरोक्त प्रकार से १०० भेद होते हैं । तिक्त, कट, कषाय, खट्टा और मोठाइन पांच रसों के भी १०० भेद हैं। सुगन्ध और दुर्गन्ध प्रत्येक के २३-२३ भेद =४६। स्पर्श के पाठ भेद खर, कोमल, हल्का, भारी, शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष । प्रत्येक के ५ संस्थान, ५ वर्ण, ५ रस, २ गन्ध और ६ स्पर्श की अपेक्षा २३ भेद हो जाते हैं। २३४८ = १८४ । इस प्रकार अरूपी के ३० और रूपी के ५३० सब मिला कर अजीव के ५६० भेद हुए। (पन्नव पद १)(उत्तराध्ययन प्र. ३६) पुण्य तत्वपुण्य नौ प्रकार से बांधा जाता है - अनपुण्य, पानपुण्य, लयनपुण्य, शयनपुण्य, वस्त्रपुण्य, मनपुण्य, वचनपुण्य, कायपुण्य और नमस्कारपुण्य ।
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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