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________________ बी मेन सिद्धान्त बोल संग्रह ५८८ में दे दिया गया है। पडुञ्चमक्खिएणं का स्वरूप इस प्रकार है-- भोजन बनाते समय जिन चीजों पर सिर्फ अंगुली से घी तेल आदि लगा हो ऐसी चीजों को लेना।। ये सब आगार मुख्य रूप से साधु के लिए कहे गए हैं। श्रावक को अपनी मर्यादानुसार स्वयं समझ लेने चाहिए। (हरिभद्रीयावश्यक प्रत्याख्यानाभ्य।) ६३०- विगय नौ शरीरपुष्टि के द्वारा इन्द्रियों को उत्तेजित करने वाले अथवा मन में विकार उत्पन्न करने वाले पदार्थों को विगय कहते हैं। संयमी को यथाशक्ति इनका त्याग करना चाहिए। ये नौ हैं(१) ध-वकरी, भेड़, गाय, भैंस और ऊँटनी (सांड) के भेद से यह पाँच प्रकार का है। (२) दही- यह चार प्रकार का है। ऊँटनी के दूध का दही, मक्खन और घी नहीं होता। (३) मक्खन- यह भी चार प्रकार का होता है। (४) घी- यह भी चार प्रकार का होता है। (५) तेल- तिल, अलसी, कुसुम्भ और सरसों के भेद से यह चार प्रकार का है। बाकी तेल लेप हैं, विगय नहीं हैं। (६) गुड-- यह दो. तरह का होता है। दीला और पिण्ड अर्थात् बंधा हुआ । यहाँ गुड़ शब्द से खांड, चीनी, मिश्री आदि सभी मीठी वस्तुएं ली जाती हैं। (७) मधु- यह तीन प्रकार का होता है। मक्खियों द्वारा इकडा किया हुआ, कुन्ती फूलों का तथा भ्रमरों द्वारा फूलों से इकट्ठा किया हुआ। (८) मद्य-शराब । यह कई तरह की होती है। (8) मांस।
SR No.010510
Book TitleJain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhairodan Sethiya
PublisherJain Parmarthik Sanstha Bikaner
Publication Year1942
Total Pages490
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size17 MB
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